मंगलवार, 14 अक्टूबर 2025

३५०५ मण नमक प्रति वर्ष

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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७ आचार्य चैनराम जी ~ 
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चैनरामजी महाराज सौम्य मूर्ति थे, अति दयालु सर्व हितैषिता आदि संतों के गुण उनमें पूर्ण रुप से विकसित हो गये थे । अत: उनके दर्शन वचन से क्या राजा क्या रंक सबको ही आनन्द मिलता था । उक्त प्रकार आपको जी भी बुलाते थे उनके यहां अपनी मर्यादा से ही जाते थे । 
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वि.सं. १८१८ माघ शुक्ला चतुर्थी को जोधपुर नरेश के यहां से सांभर से ३५०५ मण नमक प्रति वर्ष दादू द्वारे में बिना कीमत दिया जाने का पट्टा होकर आचार्य चैनरामजी के पास आया था । जोधपुर नरेश नमक ही नहीं अन्न भी सदाव्रत के लिये उक्त नमक के समान ही अथार्त् नमक जितने अन्न में काम आये उतना अन्न भी नारायणा दादूधाम में पहुँचा देते थे । 
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मेडता भंडार खर्च के लिये जोधपुर नरेश ने ढाई ग्राम दिये थे । वे ग्राम चैनरामजी महाराज नारायणा दादूधाम में पधार गये तब परम विरक्त चैनरामजी महाराज ने जोधपुर नरेश को पीछे लौटा दिये । 
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मेडता में नारायणा दादूधाम की गायें रहती थी और स्थान रक्षा और गो सेवा के लिये कुछ साधु भी रहते थे । अत: ५५४ बीघा गोचर भूमि गोओं के चरने के लिये रख ली थी । इससे जोधपुर नरेश आप के त्याग से प्रभावित थे और समय - २ पर दादूद्वारे की सेवा करते ही रहते थे ।
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चैनरामजी महाराज के आचार्य काल में एक विरजानन्द रामानन्दी के शिष्य बालानन्द नामक वैरागी साधु बहुत प्रभावशाली थे । उनके बहुत शिष्य भी थे । जयपुर में उनका स्थान चांदपोल दरवाजा से कुछ दूर नाहरगढ के पर्वत की ओर है । वह बहुत बडा स्थान है और बालानन्द जी के स्थान के नाम से ही प्रसिद्ध है । 
(क्रमशः) 

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