बुधवार, 29 अक्टूबर 2025

कृष्णदास जी पयाहारी

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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७ आचार्य चैनराम जी ~ 
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फिर वैरागी साधु ने उस बालयोगी से पूछा - भगवन् आप कौन हैं ? मैं आपके चरणों में प्रणाम करके पूछता हूँ, आप सत्य सत्य बतावें । तब उस बालयोगी ने कहा - मैं कृष्णदासजी पयाहारी का शिष्य हूँ । वैरागी साधु ने कहा - मैं उनकी संप्रदाय का हूं, आप मुझे उनका दर्शन अवश्य करावें । बालयोगी ने कहा - तुम वहां चल नहीं सकते, वह दुर्गम स्थान है । 
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फिर वैरागी साधु ने अति दीनता पूर्वक प्रार्थना की, तब बालयोगी को दया आ गई । बालयोगी ने वैरागी साधु को अपने कंधे पर बैठा कर तथा वायु वेग से उड कर वहां से सौ कोस कृष्णदेवजी पयाहारी की गुफा पर एक क्षण में ही पहुँचा दिया । वैरागी साधु पयाहारी कृष्णदास जी का दर्शन करके उनके चरणों में पड गया और उनकी चरण रज अपने शिर पर धरके अति प्रसन्न हुआ ।
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फिर पूछा भगवन् ! आपके दिये हुये माला, तिलक, कंठी हम धारण करते हैं किन्तु आपके तीनों ही नहीं हैं और ठाकुर जी की मूर्ति भी नहीं है । वैरागी साधु को समझाने के लिये कृष्णदासजी पयाहारी ने कहा - अब हम आन्तर साधना करते हैं । अत: हमको अब उक्त चिन्हों की आवश्यकता नहीं रही है । उच्च कोटि के संत इन चिन्हों को रखना आवश्यक नहीं मानते । उसी समय दादूजी के शिष्य बडे सुन्दरदास जी गुफा से बाहर आये थे । 
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कृष्णदास जी पयाहारी और वैरागी साधु की बातें सुनकर वे दादू जी की साखी बोले -  
दादू माला तिलक से कुछ नहीं, काहू सेती काम । 
अन्तर मेरे एक है, अह निश उसका नाम ॥१॥
स्वांग सगाई कुछ नहीं, राम सगाई साचा ।
दादू नाता नाम का, दूजै अंग न राच ॥२॥
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उक्त साखियां सुनकर वैरागी साधु अति प्रसन्न हुआ और बोला - ये साखी तो हमारे राजस्थान के संत प्रवर दादूजी महाराज की है । यहां कौन बोल रहा है । कृष्णदासजी पयाहारी ने कहा - दादूजी के शिष्य बडे सुन्दरदासजी बोल रहे हैं । फिर वैरागी साधु उठा और सुन्दरदासजी के पास गया । दर्शन कर सत्यराम बोलकर दंडवत की तथा सुन्दरदासजी की गुफा का दर्शन भी किया । वहां अनेक संत साधना में लगे हुये थे । उन सबके दर्शन से वैरागी साधु को अति आनन्द प्राप्त हुआ । 
(क्रमशः) 

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