बुधवार, 29 अक्टूबर 2025

*७. काल चितावनी कौ अंग २९/३२*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*७. काल चितावनी कौ अंग २९/३२*
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सुन्दर सब ही थरसले, देखि रूप बिकराल । 
मुख पसारि कब कौ रह्यौ, महा भयानक काल ॥२९॥
उस भयङ्कर मृत्यु को देख सुनकर भय से कांपने लगते हैं । जब वह भयङ्कर रूप वाली मृत्यु अपना विकराल मुख खोल कर सामने आ खड़ी होती है ॥२९॥
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सत्य लोक ब्रह्मा डर्यौ, शिव डरप्यौ कैलास । 
बिष्णु डर्यौ बैकुंठ मैं, सुन्दर मानी त्रास ॥३०॥
हम निरीह प्राणियों की तो बात ही क्या ? सत्य लोक में बैठे हुए सर्वसमर्थ ब्रह्मा, कैलास पर्वत पर बैठे हुए शिव शङ्कर एवं वैकुण्ठ लोक में विराजमान विष्णु भी उसे देखते ही उस से भय(त्रास) मानने लगते हैं ॥३०॥
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इन्द्र डर्यौ अमरावती, देवलोक सब देव । 
सुन्दर डर्यौ कुबेर पुनि, देषि सबनि कौ छेब ॥३१॥
यही स्थिति अमरावती में बैठे देवराज इन्द्र की, देवलोक में बैठे देवताओं की भी होने लगती है । अधिक क्या कहें - अलकापुरी में बैठे वरुण देव भी उस मृत्यु को देख कर कांपने लगते हैं ॥३१॥
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राक्षस असुर सबैं डरै, भूत पिशाच अनेक । 
सुंदर डरपैं स्वर्ग कै, काल भयानक एक ॥३२॥
यही नहीं, राक्षस असुर, भूत पिशाच या स्वर्ग नरक लोकों में वास करने वाले सभी प्राणी उस एक मृत्यु से भय मानते हैं ॥३२॥
(क्रमशः) 

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