*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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७ आचार्य चैनराम जी ~
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बालानन्दजी ने क्षत्रियों की सब बातें मानली और शस्त्र त्याग कर चले गये । वीर क्षत्रिय और भक्त प्रजा के लोग उनको भगा कर दादूद्वारे के आचार्य चैनरामजी महाराज के पास गये । आचार्य ने उनको दुपट्टे, प्रसाद दिये । फिर वे प्रणाम करके अपने - अपने ग्रामों को लौट गये । कहा भी है -
“चार संप्रदा साथ ले, आयो बालानन्द ।
स्वामी जी से बोलियो, तिलक कंठि लो बन्द ॥१॥
कागज लिख्यो स्वामी जी, खंगारोत बुलाय ।
निर्गुण धर्म को मेटि हैं, बालानन्द समझाय ॥२॥
कचहरी भरी खंगार कां, देखो क्या भाई ।
बालानन्द को लूटल्यो, द्यो नगारे घाई ॥३॥
दलक चढयो खंगार को, ज्यों असुरन पर इन्द ।
द्वादश सहस्र हु संप्रदा, भाग्यो बालानन्द ॥४॥
सुन सु चढ्या जगमाल, वेगि चढ्या खंगार ।
कोस एक पर घेरिया, दांतां लियो तणार ॥५॥
कपिला गज खंगार की, साधु गऊ क्यों मारा ।
पोथी तूंबी राखिये, शस्त्र लोह हमारा ॥६॥
गुरु धर्मी खंगार का, राखो गुरु मर्याद ।
स्वामी जी प्रसन्न भये, दुपटा दिये प्रसाद ॥७॥(दौलतराम)
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चैन चतुर की चतुरता, भई सब हि सुखकार ।
हिंसा हुई न लेश भी, देखो दादूद्वार ॥१॥
बालानन्द के जात ही, सुखी भये सब संत ।
कहने लागे अन्य सब, धन्य सु चैन महन्त ॥२॥(नारायणा)
(क्रमशः)

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