गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

चैन राम मय होय


*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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७ आचार्य चैनराम जी ~ 
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फिर पीछा ही कृष्णदासजी के पास आकर बैठा तब कृष्णदासजी ने कहा - अब तुम अपने देश को चले जाओ, हरि स्मरण करते रहना । वैरागी साधु ने कहा - यहां ही रहने दीजिये । कृष्णदासजी ने कहा - यहां तुम नहीं रह सकते । फिर कृष्णदासजी ने बालयोगी को कहा - अब तुम इनको जहां से लाये हो वहां छोड आओ । फिर बालयोगी वहां ही छोड गया । 
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फिर वहां से वह वैरागी साधु भ्रमण करता हुआ नारायणा दादूधाम पर आया । उस समय आचार्य चैनरामजी थे । उनके पास जाकर दंडवत की सत्यराम बोलकर बैठ गया । फिर उसने उक्त सुन्दरदासजी और उनकी गुफा का परिचय चैनरामजी महाराज को दिया । 
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तब चैनराम जी महाराज ने कहा - आप का कथन ठीक है । सुन्दरदासजी अचला गिरि की गुफा में कृष्णदासजी पयाहारी के पास ही रहते हैं । हम उनका दर्शन ध्यान के समय प्रतिदिन ही कर लेते हैं । फिर चैनराम जी महाराज ने उस पर्वत के तथा गुफा के चिन्ह भी बताये । उन सबको वह देख कर आया था ।
उसने सुनकर कहा - महाराज ! जैसा आप कह रहे हैं, वैसा ही में अपनी आखों से देखकर आया हूँ । इससे सूचित होता है कि - चैनराम जी महाराज महान् योगी थे और उनको दूरदर्शन की शक्ति भी प्राप्त थी । आचार्य चैनराम जी महाराज अपनी गुरु परंपरा के समान ही महात्मा थे । 
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दादूवाणी के विचार में व प्रचार में आप सदा संलग्न रहते थे । यही कारण था कि - आप पर दादूपंथी समाज की तो अटूट श्रद्धा थी ही किन्तु अन्य धार्मिक जनता भी आप पर बहुत श्रद्धा रखती थी । जब से आप आचार्य पद पर विराजे थे, तब से ही सब प्रकार की परिस्थितियां सुधरती ही गई थी । 
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बालानन्दजी का बाह्य आक्रमण जब नारायणा दादूधाम पर हुआ था तब भी आपकी संतता ने उनको रोका था । आप उनके नारायणा में आते ही जान गये थे कि ये हमारे साथ दुर्व्यवहार करने आये हैं, तो भी आप ने उनका स्वागत सत्कार किया था और भोजन आदि सामग्री उनको भंडार से दी थी । वह चैनराम जी महाराज की अत्यधिक विशेषता थी । तब ही तो अन्तर्यामी भगवान् ने आसपास के ग्रामों के क्षत्रियों को तथा जनता को प्रेरणा करके उनकी परंपरा की रक्षा की थी ।
अत: आचार्य चैनरामजी महाराज क्षमाशील, शांतस्वभाव, सर्वहितैषिता आदि दिव्य गुणों से युक्त थे । आपने बहुत सावधानी के साथ समाज का संचालन किया था । उक्त प्रकार आप २७ वर्ष १ मास २५ दिन गद्दी पर विराज कर चैत्र कृष्ण अष्टमी शनिवारवि. सं. १८३७ को देह त्याग कर ब्रह्मलीन हुये थे । कहा भी है -  दोहा - 
गादी बैठा चैन जी, सुखी भया सब साध ।
दादू रामहिं सुमिर के, पहुँचा ब्रह्म अगाध ॥१॥
अठारा सै सैंतीस में, चैत बदि आठें जोय । 
थावर बारहिं जानियो, चैन राम मय होय ॥२॥
(दौलतराम) 
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चैन चतुरता से रहे, कर के हरि में नेह ।
अंत मिले परब्रह्म में, देह मिला फिर खेह ॥१॥
चैनराम ने पंथ में, चैन सु दिया बढाय । 
चैनराम से संत तो, जग में दुर्लभ पाय ॥२॥
(नारायणा)
इति श्री पंचम अध्याय समाप्त: ५ 
(क्रमशः)
 

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