रविवार, 12 अक्टूबर 2025

गादी दीन्ही चैन को

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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७ आचार्य चैनराम जी ~ 
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गंगारामजी के उक्त वचन सुनकर उन आये हुये महन्त, सन्त आदि समाज के मुखिया व्यक्तियों ने परपर परामर्श करके गंगाराम जी को चैनराम जी की आज्ञानुसार आचार्यों की स्मारक छत्रियों का महन्त बना दिया और उनकी उचित मर्यादा भी बाँध दी । फिर गंगारामजी गद्दी को छोडकर बाग में चले गये और वहां ही रहने लगे । 
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कहा भी है -  
“दुविधा देखी पंथ में, गंगाराम विचार । 
गादी दीन्ही चैन को, वन(बाग) में जा बैठार ॥
अठारासै वारोत्तारो, गंगाराम वन जाय ।
ता के पीछे चैनजी, इक छत राज कराय ॥२॥
(दौलतराम)
उक्त दूसरे दोहे से ज्ञात होता है कि - गंगाराम जी वि.सं. १८१२ में गद्दी छोडकर छत्रियों के महन्त बने थे और कृपाराम जी गृहस्थ होने पर भी भंडारी बने ही रहे थे ।
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गंगारामजी की परंपरा पाखर में है और कृपारामजी भेष भंडारी की परंपरा कैरे ग्राम है । गंगारामजी गद्दी छोड कर छत्रियों के महन्त बन गये तब समाज ने चैनरामजी महाराज से प्रार्थना की कि भगवन् ! आपकी आज्ञानुसार ही व्यवस्था हो गई है । गंगाराम जी ने सहर्ष आपके लिये गद्दी छोड दी है । 
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समाज ने उनको आचार्य परंपरा की छत्रियों का महन्त बना दिया है । वे अब बाग में जहां छत्रियां बनाने की योजना है उन छत्रियों के स्थान के पास ही रहने लग गये हैं, अब आप नारायणा दादूधाम में शीघ्र ही पधारें । यह उक्त वचन सुनकर चैनरामजी महाराज ने नारायणा दादूधाम में आना स्वीकार कर लिया । 
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फिर उनके आगमन के समय नारायणा दादूधाम से बाजे गाजे बजाते हुये बडी धूमधाम से तथा संकीर्तन आदि मंगलमय कार्यक्रम से समाज ने चैनरामजी महाराज का सामेला किया अर्थात् सामने जाकर मिले, और पूर्ण सत्कार पूर्वक दादूद्वारा में लाकर गद्दी पर बैठाया और उच्च स्वर से सब समाज ने दादूजी महाराज की जय बोली । 
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फिर सब ने अपनी - २ मर्यादा के साथ भेंट चढाकर दंडवत की । पश्‍चात् भेंट चढाने वालों को भेंट के समान प्रसाद दिया । उक्त प्रकार चैनरामजी महाराज मेडता से नारायणा दादूधाम में पधारे ।
(क्रमशः) 

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