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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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८ आचार्य निर्भयरामजी
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दादू जी का वचन देखिये -
“रोक न राखे झूठ न भाखे, दादू खर्चे खाय ॥
नदी पूर प्रवाह ज्यों, माया आवे जाय ॥”
संतों की अर्थ नीति सदा से यही रही है । निर्भयराम जी महाराज भी ऐसा ही करते थे ।
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लावा चातुर्मास
वि. सं. १८५९ में आचार्य निर्भयराम जी महाराज का चातुर्मास लावा में हुआ था । उस चातुर्मास में भी सदा की भांति सत्संग वाणी प्रवचन, जागरण, कीर्तन आदि का कार्य बहुत अच्छा रहा । लावा की जनता ने सत्संग का महान् आनन्द प्राप्त किया और शक्ति के समान संतों की सेवा का भी लाभ लिया ।
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लावा का चातुर्मास समाप्त करके आचार्य निर्भयराम जी महाराज ने अजमेर मेरवाडे की रामत की । इस रामत में दादूवाणी के उपदेशों से हजारों मानवों ने परमात्मा के नाम चिन्तन में मन लगाया और दुर्गुणों को छोडकर सद्गुणों को अपनाया ।
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उक्त प्रकार से निर्भयराम जी महाराज के उपदेश तथा दर्शन से, वे जिधर जाते थे उधर धार्मिक जनता लाभ ही उठाती थी । जोधपुर राज्य की रामत वि. सं. १८६० में जोधपुर राज्य की रामत करी । जोधपुर नरेश को प्रसाद भेजा । राजा ने प्रसाद लेकर आचार्य निर्भयराम जी को एक हाथी भेंट किया । हाथी को सेवा में भेजकर पत्र भी दिया ।
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उसकी नकल - मोहर श्री परमेश्वर जी सहाय छै । स्वस्ति श्री सर्वोपमा विराजमान स्वामी जी श्री निर्भयराम जी चरण कमलों में जोधपुर से भंडारी गंगाराम व सिंघी इन्दराज लिखायत दंडवत वांचसी । अठारा समाचार श्री श्री रै तेज प्रताप सूं भला छै, आपरा सदा आरोग्य चाहीजे । अपरंच कागद आपरो आयो, समाचार वांचिया ।
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श्री हुजूर ने प्रसाद दुशालों में लियो सो मालुम कियो । श्री दरबार से हाथी एक आपरै मेलियो छै सो पहुंचसी, कामकाज हो सो लिखाया करावसी । सं. १८६० रा पोष सुदी १ । उक्त प्रकार नारायणा दादूधाम के आचार्य जिस राज्य में पधारते थे उसके राजा को सूचित कर देते थे कि हम तुम्हारे राज्य में भगवान् की भक्ति का प्रचार करने के लिये आये हुये हैं । सो तुम को ध्यान रहे ।
(क्रमशः)

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