सोमवार, 10 नवंबर 2025

*८. नारी पुरुष श्लेष को अंग २४/२६*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*८. नारी पुरुष श्लेष को अंग २४/२६*
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सुन्दर नारी पतिव्रता, तजै न पिय कौ संग । 
पीव चलै सहिगामिनी, तुरत करै तन भंग ॥२४॥
(नारी एवं नाडी दोनों के ही पक्ष में-) यह नारी ऐसे पतिव्रत धर्म का निर्वाह करती है कि वह जीवनपर्यन्त पति साथ निभाती है । तथा मृत्यु के समय वह भी तत्काल अपना शरीर त्याग देती है ॥२४॥
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दैव बिछोह करै जबहिं, तब कोई बस नांहिं । 
सुन्दर नेह न निर्बहै, आपु आपु कौं जांहि ॥२५॥
यदि प्रारब्धवश जीवन के मध्य में ही उस का पुरुष से वियोग हो जाय तो उस में उस का कोई वश नहीं चलता । तब उन के प्रेम का पूर्ण निर्वाह नहीं हो पाता । उस समय, वे अपने अपने कर्मानुसार, पृथक् पृथक् चल देते हैं ॥२५॥
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इनि साषी पच्चीस मैं, नारी पुरुष प्रसङ्ग । 
सुन्दर पावै चतुर अति, तीन अर्थ तिनि सङ्गः ॥२६॥
इति नारी पुरुप श्लेप कौ अंग ॥८॥
महात्मा श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - पाठक को इन उपर्युक्त २५ साथियों में प्रत्येक साषी के तीन तीन अर्थ जानने चाहियें - १. नारी के पक्ष में, २. नाड़ी के पक्ष में, तथा ३. आध्यात्मिक पक्ष में ।
आध्यात्मिक पक्ष में - पुरुष का अर्थ होगा - परमात्मा, नारी का अर्थ यथाप्रसङ्ग होगा - आत्मा, प्रकृति या माया ॥२६॥
(क्रमशः)
 

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