मंगलवार, 11 नवंबर 2025

ठाकुर मेघसिंह जी का कायापलट

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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८ आचार्य निर्भयरामजी
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वि. सं. १८६२ में आचार्य निर्भयराम जी ने काठे़डा की रामत की । धार्मिक जनता को दादूवाणी के उपदेशों से प्रभु भक्ति में लगाते हुये डिग्गी पधारे । वहां के ठाकुर मेघसिंहजी आचार्य निर्भयराम जी डिग्गी में आगमन सुनकर अति प्रसन्न हुये और आचार्य निर्भयराम जी के दर्शन करने गये । 
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आचार्य निर्भयराम जी के दर्शन और सत्संग से ठाकुर मेघसिंह जी के हृदय में बोध जाग्रत हुआ । फिर तो जो पहले उन्होंने आसपास के प्रदेश में हलचल मचा रखी थी उसको समाप्त कर दिया और अपने प्राप्त वैभव में प्रसन्न रह कर भगवान् की भक्ति करने लग गये । 
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आचार्य निर्भयराम जी के सत्संग से ठाकुर मेघसिंह जी का कायापलट ही हो गया । वि. सं. १८६४ में राज कर्मचारी नारायणा दादूधाम के टहलुवों को कष्ट देने लगे थे अर्थात् बेगार आदि लेने लगे थे । टहलुवों ने आचार्य निर्भयराम जी ने इस आशय का एक पत्र लिखकर जयपुर नरेश के पास भेजा । फिर वहां से जयपुर नरेश ने एक पट्टा कराकर आचार्य जी के पास भेज दिया । 
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उस पट्टे की नकल यहां देते है देखिये -
श्री राम जी ~
मोहर सवाई जगतसिंह जी ~
श्री दीवान वचनात करवा निराणा का ओहदादार चौधरी कानुगो हदसे अत्र कस्बा मजकूर में दादूद्वारो छै, तीं की टहल कमीन करै छै - नाई, खाती कुम्हार, चमार वगैरह स्थान वण्यो जदसूं कमीण मजकूरई राज की बेगार माफ छै । सो आगे कोई स्थान का टहलुवा सूं बेगार वगैरह की कोई तरह की खेचल कराणा नहीं । 
मिति पोस सुदी ५ सं. १८६४ का । 
(क्रमशः)

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