मंगलवार, 11 नवंबर 2025

९. देहात्मा बिछोह को अंग १/४

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*९. देहात्मा बिछोह को अंग१, १/४*
(१. श्रीसुन्दरदासजी ने अपने सवैया ग्रन्थ में भी इसी नाम से इस अंग का निरूपण किया है । अन्तर इतना ही है कि वहाँ इस विषय का विस्तृत निरूपण है तो यहाँ वही बात सूत्र रूप में कही गयी है । अतः उचित यही होगा कि पाठक उस अङ्ग को सम्मुख रख कर ही इन साषियों को पढें । हम भी यहाँ यथाप्रसङ्ग वहाँ के छन्दों की क्रम सङ्ख्या, प्रत्येक साषी के बाद, सूचित कर रहे हैं । - स. ।)
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दोहा
सुन्दर देह परी रही, निकसि गयौ जब प्रान ।
सब कोऊ यौं कहत हैं, अब लै जाहु मसान ॥१॥
महाराज श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - जब इस शरीर से प्राण निकल जाते हैं तब यह शरीर(देह) यहीं पड़ा रह जाता है । उस समय उस निष्प्राण शरीर को देखने वाले सभी दर्शकों के मुख से यही शब्द निकलते हैं - "अब यह शरीर हम लोगों के लिये निष्प्रयोजन(व्यर्थ) हो गया, अतः इसे यहाँ से श्मशान ले जाकर भस्म(राख) कर दो" ॥२॥ (तु०- सवैया ग्रन्थ, ९/३) ।
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माता पिता लगावते, छाती सौं सब अंग ।
सुन्दर निकस्यौ प्रान जब, कोउ न बैठे संग ॥२॥
जब तक इस शरीर में प्राण थे तब तक इस के माता पिता भी स्नेहवश इसको अपनी छाती से चिपकाये रखते थे । श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - परन्तु इस से प्राण निकल जाने पर, इस के पास कोई भी बैठना नहीं चाहता ॥२॥ (तु० - सवैया ग्र०, ९/३)
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सुन्दर नारी करत ही, पिय सौं अधिक सनेह ।
तिनहूं मन मैं भय धस्यौ, मृतक देखि करि देह ॥३॥
श्रीसुन्दरदासजी महाराज कहते हैं - इस की स्त्री, इसकी जीवित अवस्था में, सबसे अधिक इस से स्नेह का प्रदर्शन करती थी; परन्तु आज वह भी, इस के प्राणरहित हो जाने से, इस देह से भय मान रही है ॥३॥ (तु०- सवैया ग्र०, ९/४)
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सुन्दर भइया कहत हौ, मेरी दूजी बांह ।
प्राण गयौ जब निकसि कैं, कोउ न चंपै छांह ॥४॥
इस के जीवित रहते हुए, इस का बडा भाई इस के विषय में कहता था कि यह तो मेरी दूसरी भुजा है; परन्तु आज इस के प्राण निकल जाने पर, इससे इतनी घृणा करता है कि वह इस की छाया का भी स्पर्श नहीं चाहता ॥४॥ (तु० सवैया ग्र०, ९/८)
(क्रमशः)

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