मंगलवार, 18 नवंबर 2025

*९. देहात्मा बिछोह को अंग २३/२५*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*९. देहात्मा बिछोह को अंग २३/२५*
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देह जीव यौं मिलि रहै, ज्यौं पांणी अरु लौंन । 
बार न लाई बिछुरतें, सुन्दर कीयौ गौंन ॥२३॥
यद्यपि जीवित अवस्था में इस देह का चेतन के साथ ऐसा सम्पर्क रहता है जैसे जल में नमक मिला रहता है; परन्तु इन दोनों को परस्पर पृथक् होने में कोई अधिक विलम्ब नहीं लगता । चेतन की सत्ता इस(देह) से तत्काल पृथक् हो जाती है ॥२३॥
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सुन्दर आइ शरीर मैं, जीव किये उतपात । 
निकसि गये या देह की, फेर न बूझी बात ॥२४॥
महाराज श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - चेतन(जीवात्मा) के साथ सम्पर्क होने के बाद, इस देह ने सांसारिक विषय भोगों की प्राप्ति के लिये बहुत उपद्रव किये हैं; परन्तु वह चेतन जब इस से पृथक् हो गया तब से किसी ने इस देह का हाल चाल भी नहीं पूछा ॥२४॥
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सुन्दर आयौ कौंन दिसि, गयौ कौनसी वोर । 
या किनहूं जान्यौ नहीं, भयौ जगत मैं सोर ॥२५॥
इति देहात्मा बिछोह को अंग ॥९॥
श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - यह चेतन इस देह में किधर से आया ? और किधर चला गया ? ये दोनों ही बातें कोई नहीं जानता । फिर भी शास्त्रकारों ने व्यर्थ के मतवाद निरूपित कर भ्रम फैला रखा है* ॥२५॥ 
(*श्रीमद्भगवद्गीता में भी लिखा है -
अव्यक्तादीनि भूतानि, व्यक्तमध्यानि भारत !
अव्यक्तनिधनान्येव, तत्र का परिदेवना ॥ 
(अ० २, श्लो० २८)
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देहात्मा बिछोह का अंग सम्पन्न ॥९॥
(क्रमशः) 

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