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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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९ आचार्य जीवनदास जी
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मध्य प्रदेश(मालवा) की रामत ~
वि. सं. १८७२ में मालवा(मध्य प्रदेश) के भक्तों ने प्रार्थना की कि - आप रामत करने मालवा में पधारें । फिर बहुत आग्रह करने पर महाराज जीवनदासजी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और नारायणा दादूधाम से अपने मंडल के सहित मालवा की रामत करने पधारे । आपके साथ कई विद्वान व गायक संत भी थे ।
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इससे जहां जाते थे वहां ही दादूवाणी की कथा, विद्वानों के भाषण, गायक संतों के भजन, नाम संकीर्तन, आरती, अष्टक, संत दर्शन, संत सेवा आदि पारमार्थिक कार्य होते रहते थे । उक्त कार्यों के द्वारा जनता के मनों में आनन्द की लहरें उठती थीं । सब लोग आनन्द में घूमने लगते थे । उक्त प्रकार जनता का कल्याण करते हुये आचार्य जीवनदासजी महाराज अपने संत मंडल के सहित शनै: शनै: इन्दौर पहुँच गये ।
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इन्दौर सत्संग ~
इन्दौर में सत्संग होने लगा । धार्मिक जनता दादूवाणी के प्रवचनों से सुख शांति का अनुभव करने लगी । गायक संतों के भजन श्रवण का भी जनता पर भारी प्रभाव पडा । विद्वान् संतों के भाषणों से शिक्षित वर्ग को अति आनन्द होने लगा । संपूर्ण नगर में इस आगत संत मंडल की कीर्ति फैल गई ।
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वहां के राजा को भी उनके मंत्री ने कहा - आजकल नारायणा दादूधाम के आचार्य जीवनदासजी अपने संत - मंडल के साथ नगर में आये हुये हैं । उनके द्वारा जनता को सत्संग का अपूर्व लाभ मिल रहा है । मंत्री का उक्त वचन सुनकर राजा ने कहा - नारायणा दादूधाम के आचार्य आये हैं तब तो मुझे भी उनके दर्शन सत्संग से लाभ प्राप्त करना है । मैं भी अवश्य जाऊंगा ।
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वि. सं. १८७२ में मालवा(मध्य प्रदेश) के भक्तों ने प्रार्थना की कि - आप रामत करने मालवा में पधारें । फिर बहुत आग्रह करने पर महाराज जीवनदासजी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और नारायणा दादूधाम से अपने मंडल के सहित मालवा की रामत करने पधारे । आपके साथ कई विद्वान व गायक संत भी थे ।
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इससे जहां जाते थे वहां ही दादूवाणी की कथा, विद्वानों के भाषण, गायक संतों के भजन, नाम संकीर्तन, आरती, अष्टक, संत दर्शन, संत सेवा आदि पारमार्थिक कार्य होते रहते थे । उक्त कार्यों के द्वारा जनता के मनों में आनन्द की लहरें उठती थीं । सब लोग आनन्द में घूमने लगते थे । उक्त प्रकार जनता का कल्याण करते हुये आचार्य जीवनदासजी महाराज अपने संत मंडल के सहित शनै: शनै: इन्दौर पहुँच गये ।
इन्दौर सत्संग ~
इन्दौर में सत्संग होने लगा । धार्मिक जनता दादूवाणी के प्रवचनों से सुख शांति का अनुभव करने लगी । गायक संतों के भजन श्रवण का भी जनता पर भारी प्रभाव पडा । विद्वान् संतों के भाषणों से शिक्षित वर्ग को अति आनन्द होने लगा । संपूर्ण नगर में इस आगत संत मंडल की कीर्ति फैल गई ।
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वहां के राजा को भी उनके मंत्री ने कहा - आजकल नारायणा दादूधाम के आचार्य जीवनदासजी अपने संत - मंडल के साथ नगर में आये हुये हैं । उनके द्वारा जनता को सत्संग का अपूर्व लाभ मिल रहा है । मंत्री का उक्त वचन सुनकर राजा ने कहा - नारायणा दादूधाम के आचार्य आये हैं तब तो मुझे भी उनके दर्शन सत्संग से लाभ प्राप्त करना है । मैं भी अवश्य जाऊंगा ।
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फिर दूसरे दिन इन्दौर नरेश आचार्य जीवनदासजी के दर्शनार्थ आये और अपनी
पूर्व की परंपरा के समान ही जीवनदासजी महाराज का सन्मान सत्कार किया । फिर
जीवनदासजी महाराज ने राजा को उपदेश दिया जिससे राजा को अच्छा संतोष प्राप्त हुआ ।
(क्रमशः)

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