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*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*१०. तृष्णा को अंग २३/२५*
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सुन्दर तृष्णा चूहरी, लोभ चूहरौ जांनि ।
इनके भीटें होत है, ऊँचे कुल की हांनि ॥२३॥
यह तृष्णा मैला ढोने वाली स्त्री(चूहड़ी) के समान है, तथा इस का पति लोभ मैला ढोने वाला(चूहड़ा) है । इन दोनों के स्पर्श से भी सभ्य पुरुष को दूर करना चाहिये, अन्यथा उसके उच्च कुलस्थ प्रतिष्ठा की हानि ही होगी ॥२३॥
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सुंदर तृष्णा सर्पणी, लोभ सर्प कै साथ ।
जगत पिटारा मांहि अब, तूं जिनि घालै हाथ ॥२४॥
यह तृष्णा यदि काली नागिन(सर्पिणी) है तो इस का पति लोभ काला नाग है । यह समस्त जंगत् इन दोनों का पिटारा(वास स्थान) है । इस में कोई भी बुद्धिमान् आदमी हाथ न डाले; अन्यथा इन के विषमय दंश के प्रभाव से स्वस्थ पुरुष भी मृत्यु का ग्रास बन जायगा ॥२४॥
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सुन्दर तृष्णा है छुरी, लोभ खड्ग की धार ।
इनतें आप बचाइये, दोनौं मारणहार ॥२५॥
इति तृष्णा को अंग ॥१०॥
श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - यदि तृष्णा छुरी(छोटा घातक अस्त्र) है तो लोभ को तेज धार वाली तलवार समझो । बुद्धिमान् आदमी इन दोनों से स्वयं को बचाये रखें: अन्यथा ये दोनों तो स्वभावतः हत्यारे हैं, पता नहीं कब कोई इन के लक्ष्य पर आ जाय ! ॥२५॥
इति तृष्णा का अंग सम्पन्न ॥१०॥
(क्रमशः)

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