सोमवार, 24 नवंबर 2025

राजगढ की तपस्थली

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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८ आचार्य निर्भयरामजी
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हनुमत स्थापना
पाडूंपोल के हनुमान जी की स्थापना आचार्य निर्भयरामजी महाराज ने ही की थी । पाडूंपोल के हनुमान जी का अच्छा मेला भरता है । उस मेले में जनता प्रथम निर्भयरामजी की जय बोलती है । पीछे हनुमानजी की जय बोलती है । सुनते हैं निर्भयरामजी महाराज ने १२ हनुमान जी की मूर्तियों की स्थापना की थी जो अब अच्छे प्रतिष्ठित मंदिर माने जाते हैं । इन में अधिक अलवर राज की पर्वतमाला में हैं ।
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राजगढ की तपस्थली
आप राजगढ में जहां तपस्या करते थे उस तिवारे में पहले घृत का दीपक जलता था । यह तिवारा राजगढ के महन्तों की पुरानी हवेली और निर्भयरामजी महाराज की छत्री के पास ही है । पहले उसमें जाकर श्रद्धालु भक्त लोग प्रणाम करते थे ।  
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गुण गाथा दोहा - 
प्रेम भक्ति अरु दान कर, कर्म करे सब क्षीन ।  
स्वामी निर्भयरामजी, निर्भयपद में लीन ॥१॥
दान मान सन्मान कर, सब को पोषें सोय ।
स्वामी निर्भयराम से, कर्ता करे तु होय ॥२॥
जो जैता देखा नहीं, सो निर्भय देखे आय ।
निर्भय दर्शन वचन से, तीन ताप मिट जाय ॥३॥ 
निर्भय निर्भय होयकर, विचरे भव के मांहिं ।
निर्भय सम निर्भय बने, ऐसे भव बहु नांहिं ॥४॥
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मनहर - 
निराधार निराकार निरंजन रामजी के, 
नाम में निशंक मन नित्य ही लगाया था ।
घूम घूम घनी बार घमंड हटायकर,
दादूजी की वाणी का गंभीर ज्ञान गाया था ।
सौम्य शांत शीतल स्वभाव निर्भयरामजी के,
‘नारायण’ वचन सुने सो सुख पाया था ।
नारायणा दादूधाम महिमा बढाय कर,
निर्भयराम निर्भय पद में समाया था ॥५॥
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राजगढ के महन्त गोविन्ददासजी के एक शिष्य मलूकदासजी जो निर्भयरामजी महाराज के समकालीन और उनकी सेवा में रहे हैं, उनके वचन भी देखिये -
दोहा - 
स्वामी निर्भयरामजी के, हैं गुण अमित अपार ।
मलूकदास चेरो कहै, निशिदिन बारंबार ॥१॥
स्वामी निर्भयराम ने, बहुत किये भव पार । 
मलूकदास चेरो कहै, फेरि धरो अवतार ॥२॥
श्री दादूधाम नारायणा के आचार्य स्वामी निर्भयरामजी बहुत उच्चकोटि के संत हुये हैं । उनकी गुण गाथा बहुत संतों ने गाई है किन्तु मलूक दासजी के प्रथम दोहे के अनुसार उनकी गुणगाथा अपार ही है । कारण, संतराममय होते हैं । राम की गुण गाथा का पार कौन पा सकता है ? वैसे ही संतगुण गाथा का पाना भी सहज नहीं है । किन्तु ऐतिहासिक चरित्र जो भी मुझे मिल सका, उसको यहां लिख दिया गया है । 
निर्भय निर्भयराम को, बारंबार प्रणाम ।  
'नारायण' की भूल को, क्षमा करें गुणधाम ॥ 
इति श्री षष्ठ अध्याय समाप्त: ६
(क्रमशः) 

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