शनिवार, 22 नवंबर 2025

निर्भयरामजी का महोत्सव

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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८ आचार्य निर्भयरामजी
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निर्भयरामजी का महोत्सव ~
आचार्य प्रवर निर्भयरामजी के ब्रह्मलीन होने पर अलवर नरेश वक्तावरसिंह जी ने उनके शरीर की अंतिम महायात्रा बडे ठाट बाट से निकाल कर जनता के दर्शनार्थ नगर के मुख्य २ भागों में होते हुये अन्तिम संस्कार करने के स्थान में ले गये थे ।
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वहां पर जैसे नारायणा दादूधाम के आचार्यों के अंतिम संस्कार होते हैं, वैसे ही विधि विधान से संस्कार किया गया । ब्रह्म भोज के समय अलवर नरेश ने ब्रह्म भोज दिया और दादूपंथी समाज को निमंत्रण देकर महोत्सव के मेले के लिये राजगढ में ही बुलाया गया और मेला किया गया । 
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सामाजिक पद्धति के अनुसार राजगढ में ही समाज ने जीवनदास जी को आचार्य पद पर अभिषेक किया । उसी समय अलवर नरेश वक्तावरसिंह जी द्वारा बनाई हुई छत्री में निर्भयरामजी महाराज के चरणों की प्रतिष्ठा हुई ।
अति हुलास अति प्रीति से, गुरुभगतापण मान ।
जीवणदास जी गुरुचरण, पधराये निज पान ॥
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छत्री में चरणों पर जी ब्रह्मलीन होने का समय था वही वि. सं. १८७१ आसोज बदि ८ गुरुवार ही दिया गया है । छत्री विशाल और सुन्दर है । बाग में बनी हुई है । अद्यापि अच्छी स्थिति में हैं ।
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छत्री की मानता ~
आचार्य निर्भयरामजी महाराज की छत्री की राजगढ में अच्छी मानता है । प्रतिदिन पूजा होती है । चरण जल से नजर आदि कई रोग दूर होते हैं । राजगढ गोविन्ददास जी के स्थान के महन्त भगवानदास जी को १६ वर्ष की आयु में निकाला निकला था उस समय उनकी स्थिति शरीरांत के समान हो गई थी । तब उनको निर्भयरामजी महाराज की छत्री पर ले जाकर चरणों के पास छोड दिया गया ।
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कुछ समय के पश्‍चात् वहां ही एक संत ने प्रकट होकर अपने कमंडलु का जल प्रसाद रुप में दिया और कहा - इसे पीले ठीक हो जायगा । उस जल के पीने के पश्‍चात् वे ठीक हो गये । यह घटना स्वयं, महन्त भगवान्दास जी ने ही मुझे सुनाई थी । ऐसी - ऐसी घटनायें वहां घटती ही रहती हैं । उस प्रदेश के लोगों में अभी भी निर्भयरामजी महाराज के प्रति अति श्रद्धा है ।
(क्रमशः) 

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