सोमवार, 24 नवंबर 2025

९ आचार्य जीवनदास जी

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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अथ अध्याय ७, ९ आचार्य जीवनदास जी
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स्वामी जीवनदासजी अपने से पूर्वाचार्य निर्भयरामजी महाराज के सबसे बडे व प्रिय शिष्य थे । इन्होंने अपने गुरुदेव आचार्य निर्भयरामजी महाराज की पूर्ण श्रद्धा भक्ति से अच्छी सेवा की थी । ये भजनानन्दी महात्मा थे । 
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इनका अधिकतर समय भजन करने में तथा दादूवाणी के पाठ व विचार में जाता था । ये व्यर्थ की बातें कभी भी नहीं करते थे और अपने अधीन रहने वाले संतों को भी व्यर्थ बातें करने का अवकाश नहीं देते थे । भजन, वाणी पाठ व विचार में ही लगाये रखते थे । इनका उक्त साधुता का व्यवहार देखकर तथा शांत सरल स्वभाव देखकर आचार्य निर्भयरामजी ने पहले ही निश्‍चय कर लिया था कि यह जीवनदास ही आचार्य पद के योग्य हैं ।
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इसी से आचार्य निर्भयरामजी महाराज ने अपने शरीरान्त से १५ दिन पहले ही आचार्य पद दे दिया था किन्तु माने तो गये आचार्य निर्भयराम जी के ब्रह्मलीन होने से दिन वि. सं. १८७१ आश्‍विन कृष्णा ८ बृहस्पति वार से तथा समाज की प्रथा के अनुसार वि. सं. १८७१ आश्‍विन कृष्णा ११ रविवार को राजगढ में ही गद्दी पर विराजे । 
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जीवनदास जी महाराज भी अपने पूर्व आचार्यों के समान ही महान् महात्मा थे । आचार्य निर्भयराम जी महाराज की सेवा में चिरकाल तक रहने के कारण आप सभी व्यवहार को अच्छी प्रकार जानते ही थे । फिर भी आप बाह्य व्यवहार में भाग न लेकर पूर्वाचार्यों के समान संपूर्ण समय भजन, विचार, उपदेश में ही व्यतीत करते थे । 
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श्री जीवन जी राजगढ मीर खान जुध जान ।  
करुना हरि जप चौतरे नागा जैत जहान ॥
(सुन्दरोदय)  
बाह्य व्यवहार के कार्य तो सब भंडारी लोग ही सदा से करते आये हैं वैसे ही इन के समय में भी सब काम भंडारी ही करते थे । आप सदा भजन में ही लगे रहते थे ।  
(क्रमशः) 

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