शनिवार, 29 नवंबर 2025

*११. अधीर्य उरांहने को अंग १३/१६*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*११. अधीर्य उरांहने को अंग १३/१६*
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सुन्दर प्रभुजी पेट इनि, जगत कियौ सब ख्वार । 
को खेती को चाकरी, कोई बनज ब्यौपार ॥१३॥ 
हे प्रभो ! इस पेट के कारण हमारी खेती, नौकरी, चाकरी, वाणिज्य एवं व्यवसाय - सब कुछ विनाश के कगार पर पहुँच गया है ॥१३॥
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सुन्दर प्रभुजी पेट इनि, जगत कियौ सब दीन । 
अन्न बिना तलफत फिरै, जैसैं जल बिन मीन ॥१४॥
प्रभुजी ! इस पेट ने समस्त जगत् को ऐसा दीन हीन एवं असहाय बना दिया है कि यह भोजन के लिये वैसे ही दिन रात तड़पता रहता है जैसे जल के बिना कोई मछली तड़पा करती है ॥१४॥
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सुन्दर प्रभुजी पेट बसि, भये रंक अरु राव । 
राजा राना छत्रपति, मीर मलिक उमराव ॥१५॥
उदर के लिये सभी कर्तव्यच्युत : श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - इस पेट ने दरिद्र एवं चक्रवर्ती राजा, राना, छत्रपति, बड़े बड़े अधिपति, भूमिपति एवं सामन्तों आदि सभी को अपने अधीन कर रखा है ॥१५॥
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बिद्याधर पंडित गुनी, दाता सूर सुभट्ट । 
सुंदर प्रभुजी पेट इनि, सकल किये खटपट्ट ॥१६॥ 
इस पेट ने बड़े बड़े विद्वानों, पण्डितों को, ज्ञानी, गणियों को, दाता शूर वीर एवं योद्धाओं को भी अपने कर्तव्य कर्म से हिला कर रख दिया है(च्युत कर दिया है) ॥१६॥
(क्रमशः) 

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