शनिवार, 29 नवंबर 2025

खेतडी का चातुर्मास

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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९ आचार्य जीवनदास जी
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खेतडी का चातुर्मास 
कान्हड दासजी को सूचना दी । सूचना मिलते ही कान्हडदास जी भक्त जनता के साथ वाद्य बजाते, संकीर्तन करते हुये बडे ठाट बाट से आचार्य जीवनदासजी महाराज के सामने आये और सामाजिक रीति रिवाज के अनुसार आचार्यजी का दर्शन कर सत्यराम बोलते हुये भेंट चढाकर साष्टांग दंडवत की । 
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जनता के लोगों ने भी अपनी अपनी रुचि अनुसार प्रणाम की व भेंटें चढाई । फिर समयोचित प्रश्‍नोत्तर के पश्‍चात् अति आदर सत्कार के साथ नियत स्थान पर ले जाकर ठहराया । जल आदि आवश्यक सेवा का प्रबन्ध पहले ही कर दिया गया था । फिर उचित समय पर संतों की रुचि के अनुसार भोजन की व्यवस्था हो गई । 
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संतों की सेवा संबन्धी सभी प्रकार की व्यवस्था सुचारु रुप से कर दी गई । चातुर्मास का सत्संग आरंभ होने के दिन की सूचना नगर में करा दी गई । नियत दिन के नियत समय प्रात: काल सर्व प्रथम श्री दादूवाणी की पूजा करके दादूवाणी की कथा आरंभ की गई । आज आरंभ के दिन भी खेतडी की धार्मिक जनता ने सत्संग में अच्छा भाग लिया । 
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कथा के पश्‍चात् गायक संतों ने कथा प्रसंग के अनुसार ही उच्च कोटि के संतों के पद गाये फिर नाम संकीर्तन तथा प्रसाद बांटना आरंभ हुआ । जब तक प्रसाद बांटा गया तब तक संकीर्तन होता रहा । प्रसाद सब के आ गया तब स्वामी दादू दयालजी की जय बोलकर सत्संग समाप्त कर दिया गया । 
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फिर सब श्रोता आचार्यजी आदि संतों को दंडवत प्रणाम यथा योग्य करके अपने - अपने स्थानों को चले गये । उक्त प्रकार ही मध्य दिन में जिस ग्रंथ की कथा होती थी उसमें भी कथा का उक्त क्रम ही रहता था । सायंकाल आरती, अष्टक अन्य स्तात्रों के गायन के पश्‍चात् आचार्यजी को दंडवत तथा अन्य सब संतों को यथायोग्य सत्यराम कर नामध्वनि करते थे । 
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‘दादूराम’ मंत्र की एक घंटा ध्वनि होती थी । बीच - बीच में नाम महिमा के संतों के वचन, साखी, अरिल आदि पद्य भी बोले जाते थे । फिर सब संत अपनी एकांतिक साधना अपने - अपने आसनों पर जाकर करते थे । कोई भक्त भोजन के लिये ग्राम में अपने घर संत मंडल के सहित आचार्यजी को बुलाना चाहता था तो आचार्य जी की जाने की मर्यादा के साथ ले जाता था । 
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सवारी से तथा वाद्य बजाते हुये और संकीर्तन करते हुये संत तथा भक्त लोग साथ - साथ जाते थे । उसी प्रकार सन्मान के सहित आसन पर पहुँचाया जाता था । प्रत्येक चातुर्मास का नियम यही रहता था । बिना विशेष काम के कोई भी संत नगर में नहीं जा सकता था । भोजन के समय सब साथ ही जाते थे और साथ ही आते थे । उक्त मर्यादा के साथ ही आचार्यों के प्रत्येक चातुर्मास होते थे । 
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चातुर्मास समाप्ति पर कान्हड दासजी ने आचार्यजी को उनके मर्यादा के अनुसार भेंट, भंडारी आदि की मर्यादा के अनुसार उनका सत्कार, सब संतों की मर्यादानुसार वस्त्र, नारायणा दादूधाम के सदाव्रत के लिये दिल खोलकर धन राशि दी और पूर्ण सम्मान के साथ सबको विदा किया । उक्त प्रकार खेतडी का चातुर्मास बहुत सुन्दर हुआ । 
(क्रमशः)

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