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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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९ आचार्य जीवनदास जी
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वि. सं. १८७३ में जयपुर नरेश जगतसिंह जी ने नारायणा दादूधाम दादूद्वारे के सदाव्रत के निमित्त शामलपुरा ग्राम का पक्का पट्टा श्रीस्वामीजी महाराज के पास भेजा । महाराज जीवनदासजी ने इसको अस्वीकार नहीं किया । यह समझकर स्वीकार कर लिया कि सदाव्रत तो चलता रहना अच्छा ही है ।
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आपसे पूर्व के ८ आचार्यों ने नारायणा दादूधाम के सदाव्रत के लिये भेंट तो स्वीकार की थी किन्तु ग्राम स्वीकार नहीं किये थे । कारण - ग्रामों की व्यवस्था करना, उनसे कर उगाहना आदि झंझट संतों को अच्छे नहीं लगते थे । जीवनदास जी महाराज ने समय की स्थिति देखकर ग्रहण कर लिया था और उसकी आय दैनिक सदाव्रत में लगा दी जाती थी ।
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वि. सं. १८७६ में अलवर नरेश ने आचार्य जीवनदासजी को निमंत्रण देकर अलवर बुलाया । राजा के निमंत्रण से आचार्य जीवनदासजी अपने संत मंडल के सहित अलवर पधारे । अलवर पहुँचने पर, राजा को सूचना भेजी । सूचना मिलते ही अलवर नरेश स्वयं ही राजकीय ठाटबाट से आचार्यजी की अगवानी करने आये ।
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आचार्य जीवनदासजी महाराज के दर्शन करके सत्यराम बोलकर यथोचित भेंट चढाकर प्रणाम किया । फिर परस्पर शिष्टाचार रुप प्रश्नोत्तर होने के पश्चात् महान् सम्मान सत्कार से आचार्यजी को साथ लेकर राजा नगर में आये और नगर के मुख्य - मुख्य भागों से आचार्य जी की सवारी को ले जाकर एक सुन्दर और एकान्त स्थान में ठहराया और सेवा संबन्धी सब प्रकार का प्रबन्ध सुचारु रुप से करा दिया ।
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फिर प्रतिदिन दादूवाणी की कथा, विद्वान संतों के भाषण, गायक संतों के भजन गायन, नाम संकीर्तन, आरती, संत सेवा आदि दैनिक पुण्य कार्यों में अलवर की जनता सप्रेम भाग लेने लगी ।
(क्रमशः)

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