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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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९ आचार्य जीवनदास जी
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आचार्य जीवनदासजी महाराज से राजा ने प्रार्थना की कि - महाराज ! कुछ दिन आप इन्दौर में और ठहरिये । महाराज जीवनदासजी ने कहा - यहां कई दिन से ठहर रहे हैं अब तो जाने का ही विचार है । फिर भी यदि आप सत्संग में आकर लाभ लेना चाहें तो और भी ठहर सकते हैं ।
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राजा ने कहा मैं भी आ सका तब तो आ ही जाऊंगा और मैं कदाचित् कार्यवश नहीं आ सकूं तो आपके सत्संग का लाभ तो यहां की जनता अत्यधिक ले रही है । अत: मेरी प्रार्थना है कि - आप यहां जनता तथा मेरे कल्याण के लिये इन्दौर में कुछ दिन और विराजें । राजा की उक्त प्रार्थना सुनकर आचार्य जीवनदासजी महाराज ने कहा - अच्छा आपका आग्रह है तो ठहर जायेगें ।
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फिर राजा ने संत मंडल सहित आचार्य जी की सब प्रकार की सेवा का प्रबन्ध सुचारु रुप से सरकार की ओर से कर दिया । राजा नहीं आ सकता था उस दिन अपने मंत्री को भेजकर सेवा आदि के विषय में पता लगाकर आवश्यकता होती वही पूरी कर दी जाती थी ।
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समय - समय पर विशेष रसोई और भेंट भी भेजते रहते थे । आचार्य जीवनदास जी महाराज को ठहराने का आग्रह राजा ने इसलिये किया था कि - इन्दौर की जनता को कुछ दिन और सुन्दर सत्संग मिलता रहे । महाराज जीवनदासजी ने भी इसीलिये राजा की प्रार्थना स्वीकार करी थी ।
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जीवनदासजी महाराज और अन्य विद्वान् संत तथा गायक संतों से वाणी प्रवचन, भाषण, गायन आदि श्रवण करके जनता ने अपना बोध बढाया था । फिर कुछ समय पश्चात् आचार्य जीवनदासजी महाराज इन्दौर से जाने लगे तब इन्दौर नरेश ने उचित भेंट आदि देकर बहुत आदर के साथ संत मंडल के सहित आचार्य जी को विदा किया ।
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फिर इन्दौर से चलकर अपने दर्शन सत्संग द्वारा मार्ग के लोगों का कल्याण करते हुये आचार्य जीवनदासजी महाराज अपने संत मंडल के सहित नारायणा दादूधाम में पधार गये और यहाँ ही भजन करने लगे ।
(क्रमशः)

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