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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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८ आचार्य निर्भयरामजी
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राजा की प्रार्थना
अलवर निवास के समय का सब खर्च अलवर नरेश वक्तावरसिंह जी ही कर रहे थे फिर भी एक दिन राजा वक्तावरसिंहजी ने हाथ जोडकर आचार्य निर्भयरामजी महाराज से प्रार्थना की - स्वामिन् ! मैं आपकी सेवा में एक ग्राम भेंट करना चाहता हूँ आप कृपा करके अपने शिष्य की यह सेवा स्वीकार करें ।
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राजा की उक्त प्रार्थना सुनकर आचार्य निर्भयराजजी महाराज ने कहा - राजन हमें ग्राम की क्या आवश्यकता है ? राज्य करना तो आप लोगों को ही अच्छा लगता है । हम साधु हैं ग्राम का क्या करेंगे ?
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हमारे पास तो जो कुछ अनायास भेंट रुप में आता है, वह साधुओं के वस्त्र, भोजन में खर्च कर देते है और कुछ बच जाता है तो नारायणा दादूधाम के सदाव्रत में वे देते हैं । वह गरीबी की सेवा में लग जाता है । निर्भयरामजी महाराज के उक्त वचन सुनकर राजा समझ गये कि महाराज ग्राम तो नहीं ग्रहण करेंगे । इनको तो वैसे ही सेवा की जा सकता है ।
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उक्त प्रकार जनता को सत्संग का लाभ पहुँचाते हुये भादवा मास में अलवर ही विराजे । फिर एक दिन निर्भयरामजी महाराज ने अलवर नरेश वक्तावरसिंह जी को कहा - ज्ञात होता है अब यहां का अन्न जल लेना समाप्त हो गया है । अत: अब राजगढ जाने का संकल्प उठ रहा है । राजा ने कहा जैसी आपकी इच्छा है वैसा ही हो जायगा । फिर स्वयं ही अलवर नरेश वक्तावरसिंह आपको राजगढ पहुँचाने आये ।
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ब्रह्मलीन होना
आचार्य निर्भयरामजी महाराज अपने शिष्य जीवनदासजी को अपनी गद्दी देकर और दिलेरामजी को उनका उत्तराधिकारी बनाकर अलवर में ही शरीर छोडने का विचार करने लगे तब अलवर नरेश वक्तावरसिंह तथा प्रजा के आग्रह से एक पक्ष शरीर को और रक्खा था और राजगढ में आकर ३२ वर्ष ५ मास २७ दिन गद्दी पर विराजकर आश्विन कृष्णा ८मी गुरुवार वि. सं. १८७१ को ब्रह्मलीन हुये थे ।
(क्रमशः)

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