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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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९ आचार्य जीवनदास जी
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आचार्य जीवनदासजी महाराज ने खेतडी का चातुर्मास समाप्त कर सहर्ष नारायणा दादूधाम के लिये प्रस्थान किया । मार्ग के ग्रामों की भक्त जनता को अपने दर्शन सत्संग से कृतार्थ करते हुये नारायणा दादूधाम में पधार गये ।
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ब्रह्मलीन होना ~ इन्दव -
“दादुदयालु कृपाल भये तब,
जीवन यूं मन मांहिं विचारी ।
द्वैत उपाधि मिटाइ दिई सब,
आप स्वरुप की सुद्धि संभारी ॥
श्वास उश्वास उठयो उर तें,
तब जानि मिथ्या तद यो तन मारी ।
बैठि विवान कियो जय यान जु,
जाय मुक्ति की पौरि उधारी ॥१॥”
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खेतडी चातुर्मास से आकर कुछ समय पश्चात् ६ वर्ष २ मास १२ दिन गद्दी पर विराज कर वि. सं. १८७७ मार्ग शीर्ष . शुक्ला अष्टमी बुधवार को आचार्य जीवनदासजी महाराज नारायणा दादूधाम में ही ब्रह्मलीन हो गये ।
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आचार्य जीवनदासजी महाराज गद्दी पर अल्पकाल ही रहे । इनके समय में परम शांति ही रही । इनकी तपस्या दादूवाणी का प्रचार और धर्मोपदेश आदि कार्यो से ये निज समाज में तथा धार्मिक जनता में बहुत प्रशंसनीय हुये । सभी आपके उक्त कार्यों से प्रसन्न रहे । अत: आचार्य जीवनदासजी महाराज सर्व हितैषी, लोकप्रिय आचार्य हुये हैं ।
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गुण - गाथा ~ मनहर -
जीवों के जीवन रुप जगदीश जग मांहीं,
अस्ति भाति प्रियरुप व्यापक प्रकाश है ।
सर्वाधार सर्ववित सर्वेश्वर सार रुप,
सत्य शिव सुन्दर विनाशी में अनाश है ।
उसी परब्रह्म रुप राम में विलीन कर,
मन को सतत भव भोग से निराश है ।
‘नारायण’ नारायणा दादूधाम के प्रसिद्ध,
दादू पंथ आचारज श्री जीवनदास है ॥१॥
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दोहा -
गुरुवर निर्भयराम के रहे निरंतर पास ।
जीव हितैषी बन गये, इससे जीवनदास ॥२॥
जीवन जगदाधार के, तन से ही थे दास ।
आत्म रुप से ब्रह्म थे, दे न सके गुण त्रास ॥३॥
परम मित्र थे जीव के, जग में जीवनदास ।
सदा सभी को सुख दिया, दी न किसी को त्रास ॥४॥
जीवन जी की जीवनी, जीवों को सुखकार ।
‘नारायण’ निर्दंभ अति, देखें सुजन विचार ॥५॥
इति श्री सप्तम अध्याय समाप्त: ७
(क्रमशः)

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