गुरुवार, 11 दिसंबर 2025

मकराणे का पत्थर

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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१० आचार्य दिलेराम जी
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पत्र लेकर भंडारी जी जोधपुर गये, राजा को पत्र दिया । राजा ने पत्र पढा और अति प्रसन्नता के साथ उसी समय मकराणे के शासक को आज्ञा पत्र लिख दिया कि नारायणा दादूधाम के दादू मंदिर के लिये तीन दिन तक जितना पत्थर साधु महात्मा ले जा सकें उतना बिना मूल्य और किसी भी प्रकार के टैक्स के बिना ही ले जाने दो और अपने यहाँ से प्रेम सहित लदान करा दो । 
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उक्त पत्र की एक नकल भंडारीजी को दे दी । भंडारी जी राजा को शुभाशीर्वाद देकर नारायणा दादूधाम में आ गये और राजा का आज्ञा पत्र आचार्य दिलेरामजी महाराज को दे दिया । फिर आचार्य दिलेरामजी ने मिस्तरी को बुलाकर पूछा, अपने को कितना मकराणा का पत्थर मंदिर के लिये चाहियेगा । 
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मिस्तरी ने कहा - राजा की आज्ञानुसार तीन दिन में हमें मकराणा का पत्थर ला सकें उतना ले आना चाहिये । यदि बच भी जायगा तो कोई बुराई नहीं है । फिर जोधपुर नरेश की आज्ञानुसार मकराणे नगर के शासक ने तीन दिन तक मकराणे का पत्थर बिना मूल्य बिना टैक्स के लदा दिया । 
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इस प्रकार मकराणे का पत्थर नारायणा दादूधाम में आ पहुँचा । मकराणे के पत्थर के लाने का काम आसपास के भक्त किसानों ने किया था । वे अपने गाडे जोतकर अनायास ही नारायणा दादूधाम में आये थे । इसी प्रकार जब अन्य सामग्री भी तैयार हो गई तब वि. सं. १८८४ ज्येष्ठ शुक्ला चौथ बुधवार को शुभ मुहूर्त्त में विशाल मंदिर की नींव लगाई गई । 
(क्रमशः)    

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