सोमवार, 15 दिसंबर 2025

*१३. देह मलिनता गर्ब प्रहार कौ अंग २०/२२*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
.
*१३. देह मलिनता गर्ब प्रहार कौ अंग २०/२२*
.
सुन्दर कबहूं फुनसली, कबहूं फोरा होइ । 
ऐसी याही देह मैं, क्यौं सुख पावै कोइ ॥२०॥
कभी इसमें कहीं छोटी फुन्सी(पिडिका) हो जाती है, तो कभी बड़ा व्रण(फोड़ा) । ऐसे दुःखदायी देह के रहते कोई क्या सुख पा सकता है ! ॥२०॥
.
कबहूं निकसै न्हारवा, कबहूं निकसै दाद । 
सुन्दर ऐसी देह यहु, कबहुं न मिटै विषाद ॥२१॥
कभी इस शरीर में न्हारवा२ निकल आता है, कभी इस में कहीं दाद३ हो जाता है । श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - यह देह तो ऐसी है कि इस में कष्टों का अन्त ही नहीं होता ॥२१॥ 
(२ न्हारवा - राजस्थान में यह रोग बहुत होता है । इस में शरीर के अधोभाग में फुंसी हो जाती हैं, उनमें से मोटे धागे के समान पतले पतले सफेद कीड़े निकलने लगते हैं । इसे ‘नहारुवा’ भी कहते हैं । ३ दाद - एक चर्म रोग । इस में गोल चक्रक के रूप में फुंसियाँ होती हैं । उनमें खुजली बहुत होती है ।)
.
सुन्दर कबहूं ताप ह्वै, कबहूं ह्वै सिरवाहि । 
कबहूं हृदय जलनि ह्वै, नख शिख लागै भाहि ॥२२॥
कभी इसमें ज्वर रोग हो जाता है, कभी कोई शिरोरोग । कभी हृदय में ऐसी जलन होने लगती है कि नख से शिखा तक शरीर के सभी अंग तडपने लगते हैं ॥२२॥
(क्रमशः) 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें