🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
.
*१३. देह मलिनता गर्ब प्रहार कौ अंग २३/२५*
.
कबहूं पेट पिरातु है, कबहूं मांथै सूल ।
सुन्दर ऐसी देह यह, सकल पाप का मूल ॥२३॥
कभी कोई उदर रोग(पेट में पीड़ा) या कभी शिरःशूल हो जाता है । इस प्रकार यह देह समस्त पापों की जड(मूल) है ॥२३॥
.
सुन्दर कबहूं कान मैं, चीस उठै अति दुःख ।
नैंन नाक मुख मैं बिथा, कबहूं न पावै सुक्ख ॥२४॥
इस में, कभी कान में तीक्ष्ण पीडा(चीस) होने लगती है, कभी नाक में या कभी नेत्रों में पीडा होने लगती है । इस प्रकार कोई भी प्राणी, शरीर के रहते हुए, सुख नहीं पा सकता ॥२४॥
.
स्वास चलै खांसी चलै, चलै पसुलिया बाव ।
सुन्दर ऐसी देह मैं, दुखी रंक अरु राव ॥२५॥
इति देह मलिनता गर्ब प्रहार कौ अंग ॥१३॥
इस देह के रोगों को कहाँ तक गिनाया जाय, इस देह में कभी खांसी(कास रोग) और कभी सांस(स्वास रोग) उठने लगता है । कभी पसुलियों में दर्द होने लगता है । श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - ऐसे इस रोगमय देह कारण, राजा से रङ्क तक सभी कष्ट पाते हैं ॥२५॥
.
देह मलिनता गर्ब प्रहार का अंग सम्पन्न ॥१३॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें