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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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१० आचार्य दिलेराम जी
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जयपुर पधारना ~
वि. सं. १८८९ आषाढ शुक्ला १२ को अपने शिष्य मंडल के सहित आचार्य दिलेरामजी महाराज जयपुर पधारे । अपनी मर्यादा के अनुसार जयपुर नरेश को अपने आने की सूचना दी । तब दारोगा स्वरुपचंदजी हाकिम ढ्यौढी, राजा की आज्ञा से हाथी, निशान, नक्कारा आदि पूरा लवाजमा लेकर अगवानी के लिये आये और जयपुर राज्य की मर्यादा के अनुसार भेंट चढाकर प्रणाम किया ।
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हाथी पर आचार्य जी को बैठाकर बाजे बजाते हुये बडे ठाट बाट से लेकर चले । साथ में संत मंडल और भक्त मंडल संकीर्तन करते जा रहे थे । उक्त प्रकार अति आनन्द के साथ नगर के मुख्य - मुख्य भागों से होते हुये नियत स्थान में ले जाकर ठहराया ।
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भाद्र कृष्णा ६ को श्रीमती राज माता जी ने रसोई दी और अपनी मर्यादा के अनुसार भेंट भेजी । आश्विन शुक्ला ८ को आचार्यजी के दर्शन करने जयपुर नरेश सवाई जयसिंह जी आये । आचार्यजी के भेंट चढाकर प्रणाम की फिर बहुत देर तक आचार्यजी से ज्ञान चर्चा करते रहे । पश्चात् प्रणाम करके राजमहल को चले गये ।
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उदयपुर(मेवाड) चातुर्मास ~
वि. सं. १८९२ के चातुर्मास के लिये उदयपुर महाराणा जवानीसिंह जी ने निमंत्रण दिया था । अत: आचार्य दिलेरामजी महाराज अपने शिष्य मंडल के सहित आषाढ शुक्ला ९ मी को उदयपुर पहुँचे और नगर के बाहर ठहर कर महाराणा जवानीसिंह जी राजकीय ठाट बाट के सहित आचार्य दिलेरामजी की अगवानी करने आये ।
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भेंट चढाकर प्रणाम की फिर आवश्यक प्रश्नोत्तर के पश्चात् अति आदर के सहित ले जाकर सुन्दर तथा एकान्त स्थान में ठहराया और चातुर्मास संबन्धी सब प्रकार की सेवा का सुचारु रुप से प्रबन्ध कर दिया गया । और एक मंत्री को आचार्य जी सहित संत मंडल की प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति के लिये नियुक्त कर दिया गया
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और आचार्यजी को कह दिया गया कि किसी भी संत को कोई आवश्यकता हो तो इन मंत्रीजी को कहें, यह उसकी तत्काल पूर्ति कर देंगे । फिर महाराणा जवानीसिंह जी ने कहा जब समय मिलेगा तब मैं भी दर्शन सत्संग के लिये आपकी सेवा में उपस्थित होता रहूंगा । ऐसा कहकर महाराणा राजभवन को चले गये ।
(क्रमशः)

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