शनिवार, 20 दिसंबर 2025

*१४. दुष्ट को अंग ९/१२*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*१४. दुष्ट को अंग ९/१२*
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दुष्ट धिजावै बहुत बिधि, आनि नवावै सीस । 
सुन्दर कबहुंक जहर दे, मारै बिसवा बीस ॥९॥
दुर्जन साधारण पुरुष को विश्वास दिलाने के अनेक प्रयास करता है । कभी वह उसके सम्मुख शिर झुकाता है, कभी वह उसको विष देकर मारने का प्रयास करने से भी नहीं चूकता ॥९॥
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दुष्ट करै बहु बीनती, होइ रहै निज दास । 
सुन्दर दाव परै जबहिं, तबहिं करै घट नास ॥१०॥
दुर्जन लोक में दिखाने के लिये किसी की कभी विनती करता है, उस की विविध प्रकार से सेवा करता है: परन्तु वह अवसर पाते ही उसकी हत्या करने से भी चूकता ॥१०॥
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दुष्ट घाट घरिबौ करै, घट मैं याही होइ । 
सुन्दर मेरी पासि मैं, आइ परै जे कोइ ॥११॥ 
दुर्जन किसी के प्रति मन में दुर्भावना रखते हुए दूसरे की हानि की बात ही सोचता रहता है । वह चाहता है कि कोई मेरी चाल(पाश=फन्दा) में एक बार आ जाय, फिर तो मैं उस का नाश कर ही दूँगा ॥११॥
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बात सुनौ जिनि दुष्ट की, बहुत मिलावै आंनि । 
सुन्दर मानै सांच करि, सोई मूरख जानि ॥१२॥
श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - दुर्जन की बात कभी नहीं माननी चाहिये; भले ही वह कितना भी विश्वास दिलावे । जो उस की बातों पर विश्वास कर लेता है उसे संसार में सबसे बड़ा मूर्ख समझना चाहिये ॥१२॥
(क्रमशः) 

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