शुक्रवार, 19 दिसंबर 2025

*१४. अथ दुष्ट को अंग ५/८*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*१४. दुष्ट को अंग ५/८*
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देखी अनदेखी कहै, ऐसौ दुष्ट सुभाव । 
सुन्दर निशदिन परि गयौ, कहिबे ही कौ चाव ॥५॥
दुष्ट का यह स्वभाव होता है कि दूसरों की बात(घटना) को दूसरों से कहता रहता है, फिर भले ही वह बात उसने देखी हो या न देखी हो; क्योंकि एक से दूसरे की झूठी बात कहना(चुगली करना) उसका दैनिक स्थायी स्वभाव बन जाता है ॥५॥
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सुन्दर कबहुं न धीजिये, सरस दुष्ट की बात । 
मुख ऊपर मीठी कहै, मन मैं घालै घात ॥६॥
अतः श्रीसुन्दरदासजी महाराज कहते हैं - दुष्ट पुरुष की मधुरता से कही बात पर भी विश्वास नहीं करना चाहिये; क्योंकि वह मुख से भले ही मीठी बात कहता रहे, परन्तु उसके मन में द्वेषभाव ही भरा रहता है ॥६॥
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ब्याघ्र करै ज्यौं लुरखरी, कूकर आगै आइ । 
कूकर देखत ही रहै, बाघ पकरि ले जाइ ॥७॥
जैसे कोई व्याघ्र(बघेरा) किसी कुत्ते को लपट झपट करता हुआ देखते ही देखते उसे पकड़ लेता है, वैसे ही यह दुष्ट पुरुष भी सज्जन को अपनी चाल में फंसा ही लेता है ॥७॥
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सुन्दर काहू दुष्ट कौं, भूलि न धीजहु बीर । 
नीचै आगि लगाइ करि, ऊपर छिरकै नीर ॥८॥
श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - अरे भाई ! किसी दुष्ट पुरुष का भूल कर भी विश्वास न करना; क्योंकि उस का यह स्वभाव है कि वह नीचे अग्नि लगा कर ऊपर से जल छिड़कने का अभिनय करता रहता है ॥८॥
(क्रमशः)  

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