शनिवार, 27 दिसंबर 2025

ब्रह्मलीन होना ~

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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११ आचार्य प्रेमदासजी ~ 
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ब्रह्मलीन होना ~ 
वि. सं. १९०१ का चातुर्मास केवलरामजी चोहट्या माधोपुर शेखावाटी वालों का माना था और उसी प्रान्त की रामत करते हुये चातुर्मास में बैठना था किन्तु रामत करते हुये सिरोही(शेखावाटी) में पहुँचे तब आचार्य प्रेमदासजी महाराज का स्वास्थ्य कुछ शिथिल हो गया इससे वहां ब्राह्मण भोजन कराकर वहां से नारायणा दादूधाम को लौट आये । 
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फिर नारायणा दादूधाम में ही ३ वर्ष १ मास २० दिन गद्दी पर विराजकर ज्येष्ठ शुक्ला १ शनिवार वि. सं. १९०१ को ब्रह्मलीन हो गये । यही दौलतरामजी ने कहा है - 
गादी बैठा प्रेमजी, राज कर्यो वर्ष तीन ।
दादूरामहिं सुमिर के, हुआ ब्रह्म में लीन ॥१ ॥
उन्नीसै पुनि एक ही, ज्येष्ठ मास सुदि जोय ।
पडवा पुनि शनिवार ही, प्रेम राम सुदि होय ॥२ ॥
सुन्दरोय में लिखा है - “प्रेम अरचि अंग्रेज करि चरचा सुन पद बंद ।” इससे ज्ञात होता है अंग्रेजों ने भी प्रेमजी को माना था ।
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गुण गाथा ~ दोहा - 
प्रेम मूर्ति परमेश की, प्रेमदास महाराज ।
भजा निरंजन राम को, त्याग जगत के काज ॥१॥
परम प्रेम में मग्न हो, सब थल हरि का रुप ।
प्रेमदास लखते रहे, थे वे संत अनूप ॥२॥
संत जनों से प्रेम का, करते थे व्यवहार ।
प्रेमदास जी के हृदय, था नहिं भेद विचार ॥३॥
प्रेमदास आचार्य ने, गहा सभी से सार ।
इससे ही उन पर रहा, सब का भाव अपार ॥४॥
प्रेमदास आचार्य में, द्वन्द्व रहे नहिं लेश ।
इससे वे हरते रहे, मोह जनित सब क्लेश ॥५॥
प्रेमदास जी का रहा, श्रेष्ठ भ्रमण व्यवहार ।
दादूवाणी का किया, उनने भले प्रचार ॥६॥
प्रेमदास आचार्य के, गुण कथ ले को पार ।
इससे ‘नारायण’ करे, बन्दन बारंबार ॥७॥
प्रेमदास आचार्य के, कोउ न सम कहलाय ।
उनके सम तो वे हि थे, कह कवि चुप हो जाय ॥८॥
इति श्री नवम अध्याय समाप्त: ९ 
(क्रमशः) 

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