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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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११ आचार्य प्रेमदासजी ~
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उदयपुर(मेवाड) गमन ~
वि. सं. १९०० में आचार्य प्रेमदासजी महाराज मेवाड में निर्गुण ब्रह्मभक्ति का प्रचार करते हुये अपने शिष्य मंडल के सहित उदयपुर पधारे । नगर में प्रवेश करने से पहले अपने आने की सूचना महाराणा को दी । सूचना मिलने पर महाराणा पूरे राजकीय लवाजमा के साथ आचार्य प्रेमदासजी की अगवानी करने आये और अपनी कुल परंपरा की मर्यादा के अनुसार भेंट चढाकर प्रणाम किया ।
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फिर आवश्यक प्रश्नोत्तर रुप शिष्टाचार के पश्चात् अति सत्कार पूर्वक बाजे गाजे के साथ संकीर्तन करते हुये नगर के मुख्य मुख्य भागों में जनता को आचार्यजी तथा संत मंडल का दर्शन कराते हुये एकान्त और सुन्दर स्थान में लाकर ठहराया । सेवा का पूरा - पूरा प्रबन्ध कर दिया । सत्संग प्रारंभ हुआ ।
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दादूवाणी के गंभीर उपदेशों से अति प्रभावित होकर अति रुचि से धार्मिक जनता प्रतिदिन सुनती थी । जितने दिन आचार्यजी उदयपुर में रहे उतने दिन महाराणा की ओर से सेवा का अच्छा प्रबन्ध रहा । फिर आचार्यजी उदयपुर से पधारने लगे तब महाराणा तथा जनता ने आचार्यजी सहित संत मंडल को अति सत्कार से विदा किया ।
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सोलारामजी के चातुर्मास ~
वि. सं. १९०० का चातुर्मास सोलारामजी पादूवालों ने नारायणा दादूधाम में ही कराया था । यह चातुर्मास भी सुन्दर ही हुआ था । आस - पास के संत तथा भक्त इस चातुर्मास में बहुत आते जाते रहते थे ।
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रसोइयां भी बाहर की बहुत आई थी । सत्संग के लिये भी बहुत लोग बाहर से आते जाते रहते थे, इस वर्ष नारायणा की जनता को भी सत्संग का विशेष लाभ रहा । सोलारामजी ने चातुर्मास की पद्धति के अनुसार ही यह चातुर्मास उदारता पूर्वक कराया था ।
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समाप्ति पर आचार्यजी को मर्यादा अनुसार ही भेंट दी और संत मंडल को यथोचित वस्त्र दिये तथा जो भी चातुर्मास में करने योग्य कार्य होते हैं वे सभी अच्छी प्रकार किये थे । अंत में आचार्यजी की तथा सब संतों की शुभाशीर्वाद लेकर तथा आचार्यजी को साष्टांग दंडवत व सत्यराम करके तथा सब संतों को सत्यराम करके सोलारामजी पादू ग्राम में अपने स्थान को चले गये ।
(क्रमशः)

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