शनिवार, 6 दिसंबर 2025

*१२. विश्वास को अंग १३/१६*

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*१२. विश्वास को अंग १३/१६*
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सुन्दर ऐसै रामजी, ताकौं जानत नांहिं । 
पहुंचावत है प्रान कौं, आपुहि बैठौ मांहिं ॥१३॥
उस प्रभु की अपरिमित सामर्थ्य से तूं परिचित नहीं है । वे तो स्वयं, बैठे ही बैठे तुम्हारे प्राणधारण हेतु, तुम तक तुम्हारी जीविका पहुँचा देते हैं ॥१३॥
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सुन्दर प्रभुजी निकट है, पल पल पोखै प्रांन । 
ताकौं सठ जानत नहीं, उद्यम ठांनै आंन ॥१४॥
वे तुम्हारे प्रतिपालक प्रभु सर्वदा(पल पल) तुम्हारे समीप ही रहते हैं, उनको तुम अपनी मूर्खतावश पहचान नहीं रहे हो ! अपितु, उसके बदले में, अपनी रक्षा हेतु स्वयं नित्य नवीन व्यर्थ के उपाय(उद्यम) खोजते फिर रहे हो ! ॥१४॥
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सुन्दर पशु पंखी जितै, चूंन सबनि कौं देत । 
उनकै सोदा कौंन सो, कहौ कौंन से खेत ॥१५॥
वह प्रभु संसार के सभी छोटे बड़े पशु पक्षियों को, उनकी स्थिति के अनुसार, भोजन पानी देता रहता है । उन पशु पक्षियों ने किस व्यापारी से सोदा(समझौता) किया था कि वह उनको उतनी खाद्य सामग्री पहुँचाता रहे । या वे पशु किन खेतों के स्वामी थे कि वहाँ से उनकी वह खाद्य सामग्री उपलब्ध हो जाती थी ॥१५॥
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सुन्दर अजिगर परि रहै, उद्यम करै न कोइ । 
ताकौं प्रभुजी देत हैं, तूं क्यौं आतुर होइ ॥१६॥
इसी बात को श्रीसुन्दरदासजी दृष्टान्तपूर्वक समझाते हैं - हम लोक में देखते हैं कि अजगर जैसा बृहत्काय सर्प अपने भोजन की प्राप्ति के लिये कोई प्रयास नहीं करता; तो भी उस को प्रतिदिन उसका आहार मिलता ही है; इसी प्रकार, हे प्राणी ! वे सर्वसमर्थ प्रभु तेरा भी ध्यान रखेंगे, तूँ क्यों अपने भोजन के लिये चिन्तित है ! तूं भी उस पर विश्वास रख ! ॥१६॥
(क्रमशः)  

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