रविवार, 7 दिसंबर 2025

जयपुर चातुर्मास ~

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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१० आचार्य दिलेराम जी
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जयपुर चातुर्मास ~ 
वि. सं. १८८० में आचार्य दिलेरामजी महाराज शिष्य मंडल के सहित चातुर्मास करने को आषाढ शुक्ला १० मी को जयपुर पधारे । अपनी परंपरा को मर्यादा के अनुसार जयपुर नरेश को अपने आने की सूचना दी । तब जयपुर राज्य की ओर से अगवानी के लिये दारोगा बिशनरामजी लवाजमा निशान, हाथी, अरबी बाजा, नक्कारे आदि लेकर सामने आये । 
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जयपुर राजाओं की परंपरागत मर्यादा के समान आचार्यजी को प्रणामादि करने के पश्‍चात् आचार्यजी को हाथी पर बैठाकर बाजे गाजे के साथ बडे ठाठ - बाट से चले । साथ - साथ संत मंडल तथा भक्त मंडल संतों के पद गाते हुये चल रहे में ठहराया । उस प्रकार लाकर रामरतन जी के एक सुन्दर बगीचे में एकान्त स्थान में ठहराया । 
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उस समय जयपुर राज्य के प्रधानमंत्री सामोद के रावल वैरीशालजी थे । बगीचे में ठहरने के पश्‍चात् रावल वैरीशालजी दर्शन करने आये और आचार्यजी के दर्शन सत्संग से संतुष्ट होकर गये । फिर शिष्य मंडल के सहित आचार्यजी को राजमहल में पधारने का निमंत्रण दिया । फिर पालकी में बैठकर सत्कार के साथ राजमहाल को ले चले । साथ - साथ संत मंडल संकीर्तन करते हुये चल रहा था ।
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राजमहल के पास पहुँचने पर जयपुर नरेश स्वयं महल के बाहर आकर आचार्य दिलेरामजी को प्रणाम करके सत्कार पूर्वक शिष्य मंडल के सहित महल के भीतर ले गये । फिर वहां भोजन के लिये मर्यादापूर्वक सब संतों की पंक्ति लगाई गई । जीमते समय राज - राणियों ने तथा राजमहल की माताओं ने आचार्यजी के सहित सब संतों के दर्शन महल की अटारियों से किये ।
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जीमने के पश्‍चात् सब संतों के सहित आचार्यजी को एक दिव्य महल में बैठाकर राजा ने अपनी परंपरा के समान आचार्यजी को भेंट दी । आचार्यजी ने परंपरागत अपनी मर्यादा के अनुसार राजा को एक दुशाला पर प्रसाद रखकर दिया । पश्‍चात् राजा ने सत्कार पूर्वक आचार्यजी को विदा किया । राजमहल से बाहर आकर फिर आये थे उसी प्रकार पालकी में विराज कर अपने आसन पर पधारे । 
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इसके पश्‍चात् आश्‍विन शुक्ल पुर्णिमा को जयपुर नरेश जयसिंह जी स्वयं ही आचार्य जी के दर्शन करने बगीचे में आये और सप्रेम प्रणाम करते हुये सुवर्ण मुद्रा भेंट करके यथोचित आसन पर विराजे तथा कुछ समय तक सत्संग किया । फिर प्रणाम करके लौट गये । यह चातुर्मास श्रीरामरतनजी ने करवाया था । 
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चातुर्मास में जयपुर की धार्मिक जनता ने सुरुचि पूर्वक सत्संग किया था । चातुर्मास मर्यादा पूर्वक बहुत ही अच्छा हुआ था । चातुर्मास समाप्ति पर रामरतनजी ने सब संतों को वस्त्र दिये और आचार्य दिलेरामजी को उचित भेंटें देकर चातुर्मास की पद्धति के अनुसार सबको संतुष्ट करके रामरतन जी ने आचार्यजी को विदा किया था ।
वहां से आचार्य दिलेरामजी महाराज गोविन्ददासजी के स्थान में पधारे । उन्होंने  आचार्य जी का अच्छा सम्मान किया और यथोचित भेंट की । फिर आचार्य जी का शिष्य मंडल के सहित आमेर दादूधाम की यात्रा करके चारमास में नारायणा दादूधाम में पधार गये । कुछ समय तक विराजकर फिर आपने राजगढ जाने का विचार किया ।  
(क्रमशः) 

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