रविवार, 28 दिसंबर 2025

उतराध की रामत ~

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*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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अथ अध्याय १०
१२ आचार्य नारायणदास जी ~
उतराध की रामत ~ 
आचार्य प्रेमदासजी के ब्रह्मलीन होने पर वि. सं. १९०१ ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को दादूपंथी समाज ने नारायणदासजी महाराज को गद्दी पर विराजमान किया । तब भी टीका का दस्तूर पूर्वाचार्यों के समान ही हुआ राजा, रईस, शिष्य मंडल, साधु समाज, सद्गृहस्थ आदि ने अपनी- अपनी मर्यादा के अनुसार टीका के समय भेंटें की । 
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फिर इसी वर्ष १९०१ में ही रामत की और स्थान- स्थान पर दादूवाणी के द्वारा ज्ञान भक्ति वैराग्यादि का उपदेश किया । इसी प्रकार उपदेश करते हुये उतराध में पधारे । उतराध मंडल के संतों ने तथा धार्मिक जनता ने आपका अच्छा स्वागत किया । आचार्य नारायणदासजी महाराज उतराध की धार्मिक जनता को अपने दर्शन और उपदेश से कृतार्थ करते हुये मार्ग शीर्ष शुक्ला ५ को जीन्द राज्य की राजधानी संगरुर पधारे । 
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वहां नगर में प्रवेश से पूर्व अपनी मर्यादा के अनुसार वहां के नरेश स्वरुपसिंह जी को अपने आने की सूचना दी । तब स्वरुपसिंह जी ने अपने राजकीय ठाट बाट से आचार्य नारायणदासजी महाराज की अगवानी की तथा अपनी मर्यादा के अनुसार भेंट की । फिर संगरुर में कुछ दिन जनता को सद्शिक्षा देते हुये ठहरे । जनता ने सत्संग में तथा संत में अच्छी प्रकार सप्रेम भाग लिया । 
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नाभा गमन ~ 
संगरुर से विदा होकर मार्ग की धार्मिक जनता को ज्ञान भक्ति आदि का उपदेश करते हुये आचार्य नारायणदासजी शिष्य मंडल के सहित नाभा पधारे । नगर में प्रवेश से पूर्व नाभा नरेश देवेन्द्रसिंहजी को अपने आने की सूचना दी । तब वे राजकीय ठाट बाट से आपकी अगवानी करने आये और भेंट चढाकर आचार्य नारायणदासजी का बहुत सम्मान किया । फिर नगर में लाये । 
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नाभा के भक्तों ने भी आपका अति सत्कार किया और नाभा में कुछ समय विराजने का सप्रेम आग्रह किया । तब नाभा के भक्तों के आग्रह से कुछ दिन शिष्य मंडल के सहित आचार्य नारायणादास जी महाराज नाभा में ठहरे । भक्त जनता ने दादूवाणी के निर्गुण भक्ति संबन्धी गंभीर प्रवचनों के सुनने में अच्छा भाग लिया और संत सेवा भी श्‍लाघनीय रुप से की । 
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नाभा के भक्तों का श्रद्धा भाव देखकर आचार्य जी के सहित सब संत मंडल को पूर्ण संतोष था । आचार्य जी ने भी अपने उपदेशों द्वारा नाभा की धार्मिक जनता को संतुष्ट किया । फिर विचरने का विचार किया तब नाभा की जनता ने संत मंडल के सहित आचार्य नारायणदासजी महाराज का हृदय से अति उपकार मानते हुये भेंट प्रणामादि शिष्टाचार से सत्कार करते हुये अपने प्रिय आचार्य को विदा किया ।  
(क्रमशः) 

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