सोमवार, 22 दिसंबर 2025

समाज का निश्‍चय

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
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११ आचार्य प्रेमदासजी ~ 
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इधर दादूद्वारे में प्रात: काल आचार्यजी को दंडवत करने आने वाले संत दंडवत प्रणाम करने आये तो आचार्यजी का दर्शन नहीं हुआ और न कोई उनकी सेवा करने वाला ही वहां मिला । तब वे संत एक दूसरे से पूछते लगे, महाराज कहां गये ? तब सब से ही यही उत्तर मिलता था कि ज्ञात नहीं है । 
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फिर सबसे सोचा यहां होंगे तब तो कथा के समय मंदिर में अपने नियम के अनुसार पधारेंगे ही । किन्तु कथा के समय भी आचार्य रामबगसजी महाराज के दर्शन नहीं हुये । तब विरक्त संतों ने कहा - वे अति विरक्त संत थे । गुरुजी की आज्ञा और समाज के दबाव से गद्दी पर बैठ तो गये थे किन्तु उनको यह वैभव संपन्न पद रुचिकर नहीं था । 
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अत: हो सकता है, वे इस पद का परित्याग करके रम गये हों । यदि ऐसा नहीं होता तब तो किसी को कहकर हो जाते और अकेले जाने का तो प्रसंग आता ही नहीं है । आचार्य जी तो कहीं भी जायें, उनके साथ भंडारी व कोतवाल आदि कर्मचारी तो साथ रहते ही हैं अत: वे वैराग्य होने पर ही कहीं गये हैं । 
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अब उनका मिलना भी कठिन ही है । कारण - वे परिचितों से छिपकर ही जायेंगे । विरक्त संतों के उक्त विचार सुनकर भी नारायणा दादूधाम के अनेक कर्मचारी तथा भक्त लोग सब ओर उनकी खोज करने के लिये निकले किन्तु कहीं उनका पता नहीं लगा । तब सब लौटकर नारायणा दादूधाम में आ गये । 
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समाज का निश्‍चय ~ 
फिर समाज के महन्त, संत तथा मुख्य - मुख्य महानुभावों को यह परस्पर विचार करके निश्‍चय किया कि - वे विरक्त संत थे, इस वैभव से घिर कर नहीं रहना चाहते थे । इससे उनकी प्रतीक्षा करना तथा उनको खोजकर यहां लाना तो कोई महत्व नहीं रखता है । 
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यदि हम लोग प्रयत्न करें और खोजकर यहां ले आयें तो फिर भी वे जा सकते हैं । उनके खोजने का यत्न न कर सब महन्त संत भक्त गण ने मिलकर यही निश्‍चय किया कि - उनके छोटे गुरु भाई प्रेमदासजी को गद्दी पर बिठा दिया जाए । यही उत्तम रहेगा । 
(क्रमशः)  

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