बुधवार, 6 मार्च 2013

= सूक्ष्म जन्म का अंग ११ =(१/३)

॥दादूराम सत्यराम॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= सूक्ष्म जन्म का अंग ११ =*
"दादू मन की वासना नरक पड़ै फिर आइ." इत्यादिक सूत्र के व्याख्यान स्वरूप, मन का स्वरूप स्थित करने के निमित्त अब सूक्ष्म जन्म के अंग का निरूपण करेंगे । 
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*मंगलाचरण*
*दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरुदेवतः ।*
*वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगतः ॥१॥* 
टीका - निरंजनदेव और सतगुरु एवं सर्व साधुओं को हमारी बारम्बार वन्दना है । इसी प्रकार हरि, गुरु, संतों की वन्दना करके मुमुक्षुजन विषय - मनोरथों को त्याग कर "पारं" नाम सूक्ष्म - जन्म आदि के पार अमर भाव को प्राप्त होते हैं ॥१॥ 
*दादू चौरासी लख जीव की, प्रकृति घट मांहि ।*
*अनेक जन्म दिन के करै, कोई जाणै नांहि ॥२॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! अज्ञानी संसारीजनों के शरीर में मन के भीतर चोरी, जारी, हिंसा आदि तथा अन्य जीवों के स्वभाव, गुण - विकार आदिक व्याप्त होते रहते हैं अर्थात् यह मन एक क्षण में नाना विषयों के संकल्पों द्वारा अनेक सूक्ष्म शरीरों से जन्मता मरता है । इस जन्म - मरण को कोई भी सांसारिक पुरुष नहीं समझता है ॥२॥ 
कबीर प्राण पिंड को तजि चले, मुवा कहै सब कोइ । 
जीव सतां जामै मरै, सूक्ष्म लखै न कोइ ॥ 
स्वेद, अंड, जर भोग वै, उदबीरज(उद्भिज) हू होइ । 
चार खानि छिन - छिन भ्रमैं, ‘जगन्नाथ’ सब कोइ ॥ 
उठत लहर जीव उपजै, बैसत ही मर जाइ । 
‘जगन्नाथ’ इक पलक में, केते जन्म धराइ ॥ 
संत श्‍वान ले आइयो, पुनि मंजारी सूरि । 
कन्या ले नृप घर गयो, देखि चरित गुरु मूरि ॥ 
दृष्टान्त - एक सन्त अपने कुटिया में कुतिया ले आये । जब उसे कुत्ते सताने लगे तब सन्त ने उसे बिल्ली बना दिया । बिल्ली को भी कुत्ते सताने लगे, तब सन्त ने उसे सूरड़ी बना दिया । किन्तु सूरड़ी गन्दी रहती थी, मल खाती थी, अत: सन्त को यह अच्छा नहीं लगा । उन्होंने उसे सुन्दर कन्या बना दिया । उस कन्या को एक राजा ले गया । राजा ने देखा कि वह कन्या दीपक चाटती है(कुत्ती का स्वभाव), दूध - दही छिपकर खाती है(बिल्ली का स्वभाव) और मल खाती है(सूरड़ी का स्वभाव) । अत: राजा उसे वापस सन्त के पास ले आया तथा उसने सन्त से पूछा कि यह ऐसा क्यों करती है ? तब सन्त ने कहा कि इसके तीन पूर्व जन्म(कुत्ता, बिल्ली, सूअर) के स्वभावों को तो मैं जानता हूँ, किन्तु जिस प्राणी ने अनेकानेक जन्म धारण किये हैं, उसके स्वभावों(प्रकृतियों) को कैसे जाना जा सकता है ? जबकि जीव पल - पल में ही मन में अनेक प्राणियों के स्वभाव ग्रहण करता रहता है अर्थात् वह प्रतिदिन अनेक बार जन्मता और मरता रहता है ।
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*अनेक जन्म दिन के करै*
*दादू जेते गुण व्यापैं जीव को, ते ते ही अवतार ।*
*आवागमन यहु दूर कर, समर्थ सिरजनहार ॥३॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! इस मन रूप जीव को जितने गुणरूप स्वभाव व्याप्ते हैं चींटी से लेकर हाथी पर्यन्त के, वे सब ही इस मनरूप जीव के सूक्ष्म शरीररूप अवतार कहिए, सूक्ष्म जन्म - मरण हैं । हे समर्थ सिरजनहार परमेश्‍वर ! इस सूक्ष्म आवागमन को आप दूर करो, अथवा हे जिज्ञासु ! यह सूक्ष्म आवागमन तू परमेश्‍वर का नाम - स्मरण करके दूर कर ॥३॥ 
अतिशय सूक्ष्म सुरति का, जीव न जाने जाल । 
कहै कबीरा दूर कर, आतम अदृष्ट काल ॥
(क्रमशः)

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