बुधवार, 6 मार्च 2013

= सूक्ष्म जन्म का अंग ११ =(४/६)


॥दादूराम सत्यराम॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी 
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= सूक्ष्म जन्म का अंग ११ =*
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*सब गुण सब ही जीव के, दादू व्यापैं आइ ।*
*घट मांहि जामैं मरै, कोइ न जाणै ताहि ॥४॥*
टीका - हे जिज्ञासुओं ! सब जीवों के सब गुण - स्वभाव इस मनरूप जीव में व्याप्त होते रहते हैं । इस प्रकार यह मनरूप जीव, हृदय प्रदेश में ही सूक्ष्म शरीरों से वासना द्वारा जन्मता मरता रहता है, परन्तु इस सूक्ष्म जन्म - मरण को कोई भी संसारीजन नहीं जान पाते ॥४॥ 
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*जीव जन्म जाणै नहीं, पलक पलक में होइ ।*
*चौरासी लख भोगवै, दादू लखै न कोइ ॥५॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! बहिर्मुख जीव अपने सूक्ष्म स्वभावरूप जन्मों को नहीं जानता है । यह सूक्ष्म आवागमन इसका पल - पल में होता रहता है । चौरासी लाख योनियों के स्वभावरूप, जन्म - मरण, इस चैतन्य मनरूप जीव के वासना द्वारा होते रहते हैं और यह सुख दुःखों को भोगता रहता है । परन्तु यह स्थूल दृष्टि होने से अपने सूक्ष्म जन्म - मरण को नहीं जान पाता है ॥५॥ 
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*अनेक रूप दिन के करै, यहु मन आवै जाइ ।*
*आवागमन मन का मिटै, तब दादू रहै समाइ ॥६॥* 
टीका - हे जिज्ञासुओं ! यह जीवरूपी मन दिन में अनेकों सूक्ष्म जन्म लेता है । इस प्रकार इस मन का यह जन्म - मरण लगातार चलता ही रहता है । जब यह सूक्ष्म आवागमन ज्ञान द्वारा नष्ट हो जावे, तब फिर यह मन अपने अधिष्ठान चैतन्य ब्रह्म में समाता है ॥६॥ 
जन्म मरण जीवत मिटै, नित्य प्रति सूक्ष्म सोइ । 
‘जगन्नाथ’ तब देह का, आवागमन न होइ ॥
(क्रमशः)

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