*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“नवम - तरंग” २९-३०)*
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*बलीन्द खान ने माफी मांगी पालकी मंगवाई*
मोर गुन्हा अपराध क्षमा करु,
मैं न लखी गति तोरि खुदाई ।
आप कही - अब नांहि डरो तुम,
धारि दया, नहिं जीव सताई ।
बलंद खान भयो तब सेवक,
छाड़ि कुरान हरी - गुण गाई ।
बेगि तहाँ शिविका मंगवावत,
सादर स्वामिहु देय बिठाई ॥२९॥
विनय के साथ बार - बार अपने गुनाहों की माफी मांगने लगा । तब दया करके स्वामीजी ने सान्त्वना दी और उपदेश दिया कि - दिल में दया धारण करो, जीवों को मत सताया करो । अब तुम्हें कोई डर नहीं है । तब से बालिदं खान भी स्वामीजी का सेवक हो गया, कुरान छोड़कर हरिगुण गाने लगा । उसने पालकी मंगवाकर, आदर के साथ स्वामीजी को अपने आसन पर भिजवाया ॥२९॥
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*सात घर में भोजन किया*
वाजि मतंग निशान सजे सब,
यों करि के गुरु धाम पठाये ।
मास गये षट् बात सुनो नृप !
सेवक सातहु नूतन आये ।
आवत भक्त बुलावत संत हु,
स्वामि स्वरूप तहाँ चलि जाये ।
एक दशा एक रूप निहारत,
यों घर सातहिं भोजन पाये ॥३०॥
हाथी घोड़ों के साथ जुलूस निकाला, ढोल नंगारे बजाते हुये अपने गुरुजी को संतधाम पर पहुँचाया । छ: मास और व्यतीत होने पर साँभर के सेवकों ने एक दिन स्वामीजी को एक साथ सात निमंत्रण दिये । हे राजन् ! सुनो, जो भी भक्त बुलाने आया, स्वामीजी उठकर उसी के साथ चल दिये । इस तरह सातों घरों में एक साथ एक ही स्वरूप से भोजन पाया । वस्तुत: स्वामीजी तो अपने आसन पर ध्यान मग्न ही बैठे - बैठे हरिस्मरण करते रहे, श्री हरि ने ही सात स्वरूप धर कर भक्तों की मनोकामना पूण की ॥३०॥
(क्रमशः)
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