गुरुवार, 6 नवंबर 2014

= “त्रयो विं. त.” ३९/४० =

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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“त्रयोविंशति तरंग” ३९/४०)*
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*सब संत और भक्त निराणा आ गये ~*
होत विदा गिरि ते सब सन्तजु, 
सद्गुरु सुमिरत आय नराणे ।
सेवक साधुजु नहाय सरोवर, 
साँझ समै सब जाय ठिकाणे ।
बात सुनी सब देश दिशावर, 
स्वामि कियो निजलोक प्रयाणे ।
सेवक भक्त सुसंत विचारत, 
ज्ञानहिं सूर्य छिपे यों जाणे ॥३९॥ 
गुरुदेव के निजलोक प्रयाण के पश्‍चात् सभी संत उनका स्मरण करते हुये गिरि कन्दरा से प्रस्थान करके नारायणपुर में लौट आये । सेवक तथा संतों ने सरोवर में स्नान किया, तब तक सन्ध्या काल हो गया था, अत: सभी अपने - अपने स्थान पर चले गये । देश दिशावर के भक्तजनों ने जब गुरुदेव के निजलोक प्रयाण का समाचार सुना तो ऐसा विचार किया कि - जैसे ज्ञान का सूर्य ही छिप गया हो ॥३९॥ 
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*सब संतों को विरह सताने लगा ~*
माता - बिना शिशु, दीप - बिना घर, 
चाँद बिना जिम रैन अंधारी ।
नीर बिना मछ, धेनु बिना बछ, 
हंस दुखी बिन सागर वारी ।
चँद बिना कुमोद सुहावत, 
सूर्य बिना न सरोज निहारी ।
यों दुख पावत हैं निशि वासर, 
दीनदयालु बिना शिश सारी ॥४०॥ 
जैसे माता - पिता बिना शिशु, दीपक बिना घर, चन्द्र बिना अंधेरी रात, नीर बिन मछली, धेनु बिना बछड़ा, सागर बिना हंस, चन्द्र बिना कुमोदिनी, सूर्य बिना सरोज की दु:खमयी दशा होती है, वैसी ही दशा गुरुदेव श्री दादूजी के बिना सभी शिष्य सेवकों की हो रही थी ॥४०॥ 
(क्रमशः) 

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