#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
.
*ऐसी भक्ति सुनहु सुषदाई ।*
*तीन अवस्था मैं दिन बीतै,*
*सो सुष कह्यौ न जाई ॥(टेक)*
*जाग्रत कथा कीरतन सुमिरन,*
*स्वप्नै ध्यान लै ल्यावै ।*
*सुषुपति प्रेम मगन अंतिरगति,*
*सकल प्रपंच भुलावै ॥१॥*
*सोई भक्ति भक्त पुनि सोई*
*सो भगवंत अनूपं ।*
*सो गुरु जिन उपदेश बतायौ,*
*सुन्दर तुरिय स्वरूपं ॥२॥*
यह प्रभु की भक्ति हम को कितना सुख देती है – इस विषय में विस्तार से सुनो – मेरे इस(जाग्रत्, स्वप्न, सुषुप्ति – इन) तीन अवस्थाओं में जो सुखमय दिन बीते हैं, उनकी तुलना मैं किस से करूँ ॥टेक॥
जाग्रत् अवस्था में मैंने प्रभु के जो कथा, कीर्तन सुने स्वप्न में उनके ही ध्यान में मेरी लय लगी रही । सुषुप्ति – अवस्था में, मैं उसी प्रभु के चरणों में अपना चित्त लगाये रहा तथा जगत् के अन्य सभी प्रपञ्चों का त्याग कर दिया ॥१॥ साधना की इस निरन्तरता में मेरी ऐसी स्थिति बन गयी कि मेरी अनुपम भक्ति ही भगवत्स्वरूप बन गयी । महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं – गुरु ने, मुझको जो उपदेश किया था, उसके फलस्वरूप, मैं चतुर्थ अवस्था में पहुँच कर मैं स्वरूपावस्था में स्थित हो गया ॥२॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें