#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*देव देवी सकल भ्रमि भ्रमि कहूं न पूजो आस ।*
*मानुषा तनु पाइ ऐसौ कियौ यौं ही नास ॥२॥*
*कष्ट करि करि स्वर्ग बंछहि और पृथ्वी राज ।*
*महा मूढ अज्ञान अपनौं करहिं बहुत अकाज ॥३॥*
*सुष निधान सुजान सम्रथ ताहि भजत न कोइ ।*
*कहत सुन्दरदास ऐसैं काज कैसैं होइ ॥४॥*
हमने तो सभी देवी देवताओं से, घूम घूम कर पूछ कर देख लिया, हमारी इच्छा कहीं पूर्ण नहीं हुई । हमने यह दुर्लभ मनुष्य शरीर प्राप्त कर भी व्यर्थ ही नष्ट कर दिया ॥२॥
हमने जब तब, तपस्या आदि के माध्यम से, कभी स्वर्ण माँगा तो कभी पृथ्वी का राज । अज्ञान के कारण उत्पन्न अपनी मुर्खता से अपनी अतिशय हानि कर ली ॥३॥
उस समस्त सुखदाता, ज्ञानी, समर्थ प्रभु की कोई सेवा नहीं करता, महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं – तब ऐसे हमारा कार्य कैसे सिद्ध होगा ॥४॥
(क्रमशः)
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