बुधवार, 3 अप्रैल 2019

= सुन्दर पदावली(१८. राग रामगरी - ४/२) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*देव देवी सकल भ्रमि भ्रमि कहूं न पूजो आस ।* 
*मानुषा तनु पाइ ऐसौ कियौ यौं ही नास ॥२॥* 
*कष्ट करि करि स्वर्ग बंछहि और पृथ्वी राज ।* 
*महा मूढ अज्ञान अपनौं करहिं बहुत अकाज ॥३॥* 
*सुष निधान सुजान सम्रथ ताहि भजत न कोइ ।* 
*कहत सुन्दरदास ऐसैं काज कैसैं होइ ॥४॥* 
हमने तो सभी देवी देवताओं से, घूम घूम कर पूछ कर देख लिया, हमारी इच्छा कहीं पूर्ण नहीं हुई । हमने यह दुर्लभ मनुष्य शरीर प्राप्त कर भी व्यर्थ ही नष्ट कर दिया ॥२॥ 
हमने जब तब, तपस्या आदि के माध्यम से, कभी स्वर्ण माँगा तो कभी पृथ्वी का राज । अज्ञान के कारण उत्पन्न अपनी मुर्खता से अपनी अतिशय हानि कर ली ॥३॥ 
उस समस्त सुखदाता, ज्ञानी, समर्थ प्रभु की कोई सेवा नहीं करता, महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं – तब ऐसे हमारा कार्य कैसे सिद्ध होगा ॥४॥
(क्रमशः)

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