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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*एक निरञ्जन नाम भजहु रे ।*
*और सकल जंजाल तजहु रे ॥(टेक)*
*योग यज्ञ तीरथ ब्रत दाना,*
*लौंन बिना ज्यौं बिंजन नाना ॥१॥*
*जप तप संजम साधन ऐसैं,*
*सकल सिंगार नाक बिन जैसैं ॥२॥*
*हेमतुला बैठै कहा होई,*
*नाम बराबरि धर्म न कोई ॥३॥*
*सुन्दर नाम सकल सिरताजा,*
*नाम सकल साधन कौ राजा ॥४॥*
अरे भाई ! तुम एकमात्र उस निराकार प्रभु का भजन करो । संसार का यह अवशिष्ट भ्रमजाल सर्वथा त्याग दो ॥टेक॥
(राम भजन के बिना) संसार में योग, यज्ञ, तीर्थ, व्रत आदि अन्य सब विधि विधान वैसे ही नीरस(स्वाद रहित) प्रतीत होते हैं, जैसे स्वादिष्ट भोजन, नमक के बिना, नीरस लगता है ॥१॥
इस साधना में जप, तप, संयम आदि भी ऐसे लगते हैं जैसे किसी नासिकाविहीन पुरुष का कोई भी श्रृंगार शोभा नहीं देता ॥२॥
सुवर्ण तुला पर अपने शरीर को रखने का भी तुम्हें कोई लाभ नहीं मिलेगा क्योंकि नामस्मरण के तुल्य अन्य कोई धर्म नहीं है ॥३॥
महात्मा सुन्दरदासजी कहते हैं – प्रभु का नाम स्मरण ही समस्त भक्ति साधनों में श्रेष्ठ है ॥४॥
(क्रमशः)
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