शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

= सुन्दर पदावली(२४. राग काफी - १४) =

#daduji

॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
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*अलष निरंजन थीरा कोई जानै बीरा ।* 
*कृत्तम का सब नाश है अजर अमर हरि हीरा ॥(टेक)* 
*सुंन्नि सरोवर भरि रह्या तहां आपै निरमल नीरा ।* 
*वार पार दीसै नहीं कहुं नाहीं तट न तीरा ॥१॥* 
*कछु रूप बरण जाकै नहीं वह स्वेत स्याम नहिं पीरा ।* 
*ता साहिब कै वारनै यह सुन्दरदास फकीरा ॥२॥* 
उस अलक्ष्य निरञ्जन प्रभु का कोई स्थिर चित्त साधक ही साक्षात्कार कर सकता है । इस संसार में सभी पदार्थ कृत्रिम(माया कृत) हैं, अतः सभी नाशवान् हैं । केवल एक निरञ्जन निराकार प्रभु ही अजर एवं अमर हैं ॥टेक॥ 
वे निरञ्जन निराकार प्रभु शून्य सरोवर में विराजमान हैं । वहाँ का निर्मल जल भी शून्य रूप है । न उसका आर पार(लम्बाई – चौड़ाई), न तट और न तीर ही दिखायी देते हैं ॥१॥ 
न उसके कोई रूप या वर्ण का ही ज्ञान कर पाया है कि वह श्वेत(सफेद), श्याम(काला), या पीत(पीला) है । साधु सुन्दरदासजी कहते हैं – मैं उन प्रभु का कृतज्ञ हूँ कि जिन ने मुझको यह मानव शरीर दिया । (कि जिसके आश्रय से मैं यह भक्तिसाधना कर रहा हूँ !) ॥२॥
(क्रमशः)

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