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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= फुटकर काव्य ४. आदि अंत अक्षर भेद - १५/१६ =*
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*जाल पसार्यौ है अजा । हद बेहद नहिं नाह ।*
*राति दिवस आवै जरा । हरि भजि करि निर्बाह ॥१५॥*
इस माया ने यह संसाररूपी जाल फैला रखा है । इसकी कोई सीमा नहीं है । ये रात दिन नहीं बीत रहे; अपितु इससे तुम्हारी वृद्धावस्था ही समीप आ रही है । अतः हरिभजन करता हुआ ही तूँ अपना शेष जीवन बिताने का प्रयास कर ॥१५॥
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*वास करत सब जग मुवा । रन वन चढे पहार ॥*
*पाप कटै न बिना कृपा । रटि लै सिरजन हार ॥१६॥*
संसार जन्म-मरण की परम्परा में फँस कर जन्मता है, मरता है, तथा अपनी स्थायिता के लिए अनेक उपाय करता है । उनमें कोई साधना हेतु पर्वतों पर जाता है, कोई वन में जाता है, कोई युद्ध में जाता है, परन्तु इन सब उपायों से भी उसके पाप नष्ट नहीं होते । अतः तेरे लिये सर्वोत्तम उपाय यही है कि तूँ भगवन्नाम का कीर्तन किया कर । यही सन्तों ने पापनाश का उपाय बताया है ॥१६॥
इति आद्यन्ताक्षरी सम्पन्न ॥४॥
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इन उपर्युक्त १ से १६ तक के छन्दों के विवरण से अधोलिखित छन्द बना ।
*येक येक दोऊ दोऊ तीन तीन चारि चारि,*
*पांच पांच सात सात आठ आठ घेरि घेरि ।*
*राम नाम लेह देह तात मात गेह येह *
*जागि जागि भागि भागि मार लार जहर है वार पार ॥*
॥ इति आद्यंताक्षरी ॥४॥
(क्रमशः)

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