गुरुवार, 7 नवंबर 2019

= सुन्दर पदावली(फुटकर काव्य ४. आदि अंत अक्षर भेद - १५/१६) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*= फुटकर काव्य ४. आदि अंत अक्षर भेद - ५/१६ =* 
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*जाल पसार्यौ है अजा । हद बेहद नहिं नाह ।* 
*राति दिवस आवै जरा । हरि भजि करि निर्बाह ॥१५॥* 
इस माया ने यह संसाररूपी जाल फैला रखा है । इसकी कोई सीमा नहीं है । ये रात दिन नहीं बीत रहे; अपितु इससे तुम्हारी वृद्धावस्था ही समीप आ रही है । अतः हरिभजन करता हुआ ही तूँ अपना शेष जीवन बिताने का प्रयास कर ॥१५॥
*वास करत सब जग मुवा । रन वन चढे पहार ॥* 
*पाप कटै न बिना कृपा । रटि लै सिरजन हार ॥१६॥* 
संसार जन्म-मरण की परम्परा में फँस कर जन्मता है, मरता है, तथा अपनी स्थायिता के लिए अनेक उपाय करता है । उनमें कोई साधना हेतु पर्वतों पर जाता है, कोई वन में जाता है, कोई युद्ध में जाता है, परन्तु इन सब उपायों से भी उसके पाप नष्ट नहीं होते । अतः तेरे लिये सर्वोत्तम उपाय यही है कि तूँ भगवन्नाम का कीर्तन किया कर । यही सन्तों ने पापनाश का उपाय बताया है ॥१६॥ 
इति आद्यन्ताक्षरी सम्पन्न ॥४॥
इन उपर्युक्त १ से १६ तक के छन्दों के विवरण से अधोलिखित छन्द बना । 
*येक येक दोऊ दोऊ तीन तीन चारि चारि,* 
*पांच पांच सात सात आठ आठ घेरि घेरि ।*
*राम नाम लेह देह तात मात गेह येह * 
*जागि जागि भागि भागि मार लार जहर है वार पार ॥* 
॥ इति आद्यंताक्षरी ॥४॥
(क्रमशः)

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