शुक्रवार, 8 नवंबर 2019

= सुन्दर पदावली(फुटकर काव्य, ५. मध्याक्षरी - १) =

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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥ 
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली* 
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी, 
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान) 
*= फुटकर काव्य, ५. मध्याक्षरी - =* 
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*छप्पय* 
*शंकर कर कहि कौंन ॥ पिनाक ॥* 
*कौंन अंबुज रस रंगा ॥ भ्रमर ॥* 
*अति निलज्ज कहि कौंन ॥ गनिका ॥* 
*कौंन सुनि नाद हिं भंगा ॥ कुरंग ॥* 
*काम अन्ध कहि कौंन ॥ कुंजर ॥* 
*कौंन कै देषत डरिये ॥ पंनग ॥* 
*हरिजन त्यागत कौंन ॥ कलेश ॥* 
*कौंन षाये तें मरिये ॥ मोहुरो ॥* 
*कहि कौंन घात जग में रवन ॥ कनक ॥* 
*रसना कौं कौ देत बर ॥ सारदा ॥* 
*अब सुन्दर द्वै पष त्यागि कै ।* 
*‘नाम निरंजन लेहु नर’ ॥१॥(१)॥* 
प्रथम पद : 
प्रश्न : शंकर कर कहि कौन ? उत्तर : पिनाक धनुष । 
प्रश्न : कमल की गन्ध से कौन उन्मत्त होता है ? उत्तर : भ्रमर(भौंरा) 
प्रश्न : निकृष्ट निर्लज्ज कौन है ? उत्तर : गणिका(वेश्या) 
प्रश्न : नादध्वनि सुनकर कौन भड़क जाता है ? उत्तर : मृग । 
प्रश्न : लोक में कामान्ध कौन कहा जाता है ? उत्तर : हस्ती 
प्रश्न : किसको देखते ही भय लगता है ? उत्तर : सर्प । 
प्रश्न : भक्तों को क्या त्याग देता है ? उत्तर : सांसारिक दुःख ।
प्रश्न : क्या खाने से मृत्यु हो जाती है ? उत्तर : विष । 
प्रश्न : जगत् में कौन-सी धातु सुन्दर है ? उत्तर : सुवर्ण । 
प्रश्न : वाणी का वरदान कौन देता है ? उत्तर : सरस्वती देवी । 
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अब दोनों पक्ष त्याग कर हे मानव ! तूँ भगवान् का भजन कर । 
[किसी सन्त के द्वारा यही बात काव्यबद्ध ऐसे की गयी है – 
*शंकर करहिं पिनाक, भ्रमर अंबुज रस रंगा ॥* 
*अतिनिकृष्ट गनिका सु, कुरंग सुनि नादहि भंगा ॥* 
*कहि कुंजर कामान्ध, (पन्नग) देखत हि डरिये ।* 
*हरिजन त्याग कलेश, महरु खाये ते मरिये ॥* 
*कनक धातु जग में रवन, रसना कों दे सरस वर(सरस्वती) ।* 
*इन में द्वै पख त्याग के, नाम निरंजन लेहु नर ॥१॥]*
(क्रमशः)

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