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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= फुटकर काव्य, ५. मध्याक्षरी - १ =*
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*छप्पय*
*शंकर कर कहि कौंन ॥ पिनाक ॥*
*कौंन अंबुज रस रंगा ॥ भ्रमर ॥*
*अति निलज्ज कहि कौंन ॥ गनिका ॥*
*कौंन सुनि नाद हिं भंगा ॥ कुरंग ॥*
*काम अन्ध कहि कौंन ॥ कुंजर ॥*
*कौंन कै देषत डरिये ॥ पंनग ॥*
*हरिजन त्यागत कौंन ॥ कलेश ॥*
*कौंन षाये तें मरिये ॥ मोहुरो ॥*
*कहि कौंन घात जग में रवन ॥ कनक ॥*
*रसना कौं कौ देत बर ॥ सारदा ॥*
*अब सुन्दर द्वै पष त्यागि कै ।*
*‘नाम निरंजन लेहु नर’ ॥१॥(१)॥*
प्रथम पद :
प्रश्न : शंकर कर कहि कौन ? उत्तर : पिनाक धनुष ।
प्रश्न : कमल की गन्ध से कौन उन्मत्त होता है ? उत्तर : भ्रमर(भौंरा)
प्रश्न : निकृष्ट निर्लज्ज कौन है ? उत्तर : गणिका(वेश्या)
प्रश्न : नादध्वनि सुनकर कौन भड़क जाता है ? उत्तर : मृग ।
प्रश्न : लोक में कामान्ध कौन कहा जाता है ? उत्तर : हस्ती
प्रश्न : किसको देखते ही भय लगता है ? उत्तर : सर्प ।
प्रश्न : भक्तों को क्या त्याग देता है ? उत्तर : सांसारिक दुःख ।
प्रश्न : क्या खाने से मृत्यु हो जाती है ? उत्तर : विष ।
प्रश्न : जगत् में कौन-सी धातु सुन्दर है ? उत्तर : सुवर्ण ।
प्रश्न : वाणी का वरदान कौन देता है ? उत्तर : सरस्वती देवी ।
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अब दोनों पक्ष त्याग कर हे मानव ! तूँ भगवान् का भजन कर ।
[किसी सन्त के द्वारा यही बात काव्यबद्ध ऐसे की गयी है –
*शंकर करहिं पिनाक, भ्रमर अंबुज रस रंगा ॥*
*अतिनिकृष्ट गनिका सु, कुरंग सुनि नादहि भंगा ॥*
*कहि कुंजर कामान्ध, (पन्नग) देखत हि डरिये ।*
*हरिजन त्याग कलेश, महरु खाये ते मरिये ॥*
*कनक धातु जग में रवन, रसना कों दे सरस वर(सरस्वती) ।*
*इन में द्वै पख त्याग के, नाम निरंजन लेहु नर ॥१॥]*
(क्रमशः)

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