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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= (चित्र बंध, जीनपोस बंध. ८) =*
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*उल्लाला*
*सरस इसक तन मन सरस ।*
*सरस नवनि करि अति सरस ॥*
*सरस तिरत भाव जल सरस ।*
*सरस लगत हरि लइ सरस ॥९॥*
भगवान् की भक्तिमय तथा कथा सुनने से भक्त का हृदय भी सरस(प्राणमय) हो जाता है । उसको प्रणाम करना तो उससे भी अधिक उत्तम आनन्दमय होता है ॥
उसकी सरस कथा सुनने से भक्त की भवसागर से पार होने की स्थिति बन जाती है । वह कथा भक्त को भगवान् के चरणों में प्रेमपूर्वक लीन कर देती है ॥९॥
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*सरस कथा सुनि कैं सरस ।*
*सरस बिचार उहै सरस ॥*
*सरस ध्यान धरिये सरस ।*
*सरस ज्ञान सुन्दर सरस ॥*
ये सरस कथाएँ सुनकर साधक के हृदय में भी सरस विचार उद्भुत होने लगते हैं । श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं – इससे उसको यह लाभ होता है कि वह भी इन विचारों का ही निरन्तर चिन्तन करता रहता है । अतः उसके सरस ज्ञान में सतत् वृद्धि होती है ॥१०॥
(क्रमशः)
अद्भुत नमस्कार
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