#daduji
॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - *सुन्दर पदावली*
साभार ~ महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य ~ श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= फुटकर काव्य ४. आदि अंत अक्षर भेद - १३/१४ =*
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*जाप जपे बिन ह्वै सजा । गिरा अमी रस पागि ॥*
*भाव राषि सज्जन सभा । गिर परि चरनहुं लागि ॥१३॥*
भगवन्नाम जप के बिना पुनर्जन्म का दण्ड ही मिलता है । अतः तूं साधुसंगति में श्रद्धा रख तथा उनके चरणों में पड़ा रह कि उनसे तुझे सदुपदेश मिलता रहे ॥१३॥
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*माधवजी भजि त्यागि मा । रस पी बारंबार ।*
*लाभ कौन यातें भला । रहै सुरति इकतार ॥१४॥*
सांसारिक धन(लक्ष्मी) की इच्छा त्याग कर भगवान् के ध्यान में मग्न रहकर उसका निरंतर नामजप कर । इससे अधिक तुझे इस मानव देह का अन्य लाभ क्या मिल सकता है । बस ! अपने चित्त को निरन्तर उन ही में लगाये रख ॥१४॥
(क्रमशः)

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