पाणी माहैं राखिये, कनक कलंक न जाहि ।
दादू गुरु के ज्ञान सों, ताइ अगनि में बाहि ॥
दादू माहैं मीठा हेत करि, ऊपर कड़वा राख ।
सतगुरु सिष कौं सीख दे, सब साधों की साख ॥
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प्रश्न :आपने कहा कि शिक्षक देता है ज्ञान और गुरु देता है ध्यान। ध्यान देने का क्या अर्थ है?
ज्ञान और ध्यान बड़े संयुक्त हैं। ज्ञान का अर्थ है, जानकारी और जानकारी से भरा हु आ चित्त। और ध्यान का अर्थ है, जानकारी से शून्य चित्त।
जैसे एक कमरे में फर्नीचर भरा है - यह ज्ञान की अवस्था। फिर फर्नीचर कमरे के बाहर निकाल दिया, कमरा बिलकुल खाली - यह ध्यान की अवस्था।
ध्यान उसी का अभाव है, ज्ञान जिसका भाव है। ज्ञान में जो कूड़ा - करकट तुम इकट्ठा कर लेते हो - शब्द, सिद्धान्त, - शास्त्र; ध्यान में वे सब छोड़ देने होते हैं।
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शिक्षक देता है ज्ञान और गुरु देता है ध्यान; इसका अर्थ हुआ कि शिक्षक जो देता है, गुरु वह छीन लेता है। तो तुमने जो भी सीखा है जीवन के विद्यालय में, जो भी अनुभव, जो भी ज्ञान तुमने अर्जित किया है विश्यविद्यालयों में, अध्यापकों और शिक्षकों से, शास्त्रों - सिद्धान्तों से, तुमने जो - जो संगृहीत किया है, गुरु सब छीन लेगा। वह सब में माचिस लगा देगा। वह सबको जला देगा।
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वह तुम्हारे मन के पूरे फर्नीचर से तुम्हें खाली कर देना चाहता है। उस खालीपन में ही तुम्हें पहली बार अपने विस्तार का पता चलता है। उस खालीपन में ही तुम्हें पहली दफा शांति की किरण उतरती मालूम होती है। उस खालीपन में ही तुम्हें पता चलता है, कि अहंकार नहीं है, परमात्मा है। तुम नहीं हो, वह है। ‘ओम् तत् सत्’ का बोध उसी क्षण में होता है।
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तो ध्यान और ज्ञान की प्रक्रियाएं बिलकुल अलग हैं। ध्यान भूलने का नाम है, खाली होने का नाम है।
जैसे स्लेट पर बच्चे ने कुछ लिखा है और फिर पोंछ डाला है, ऐसे संसार ने जो - जो तुम्हारे मन पर लिख दिया है, उसे पोंछ डालने का नाम ध्यान है।
ध्यान को केवल वे ही लोग उपलब्ध हो सकते हैं, जो ज्ञान से बहुत परेशान हो गए हों। अगर तुम अभी ज्ञान से परेशान नहीं हुए, तो तुम ध्यान को उपलब्ध न हो सकोगे। और जहां ध्यान की वर्षा हो रही होगी, वहा से भी तुम कुछ सीख कर लौट पाओगे।
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ऐसा हुआ, कि उन्नीस सौ पचास में एक किताब मेरे हाथ आई। एक जैन साध्वी ने योगशास्त्र पर एक किताब लिखी थी। जैनों में एक अदभुत योगी हुआ, हेमचंद्राचार्य। तो हेमचन्द्र के सूत्र पर उसने वह किताब आधारित की थी। हेमचंद्र के सूत्र बड़े अनूठे हैं। जैसे पतंजलि के सूत्र अनूठे हैं, ऐसे हेमचंद्र के हैं। पतंजलि की कोटि का आदमी है हेमचन्द्र।
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तो हेमचन्द्र के सूत्रों से संबंध जोड़कर उस महिला ने किताब लिखी। किताब उसने बड़ी बढ़िया लिखी थी। लेकिन मैं बड़ी उलझन में पड़ा, क्योंकि सब ठीक था, लेकिन कुछ - कुछ गलत था; जो कि नहीं हो सकता। अगर उसने अनुभव से लिखा हो, ध्यान का उसे अनुभव हो, तो जो भूलें उसने कीं, वे नहीं हो सकतीं। परेशानी मेरी यह थी, कि जो भी उसने लिखा था, वह बहुत साफ - सुथरा और ऐसा लगता था, जैसे किसी ने अनुभव से लिखा हो। लेकिन कुछ भूलें भी थीं, जो बताती थीं कि अनुभव वाला आदमी वे भूलें नहीं कर सकता।
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खैर ! बात आई - गई हो गई। मैं उस किताब को भूल गया। कोई पद्रह साल बाद, उन्नीस सौ पैंसठ में मैं राजस्थान के दौरे पर था, एक गांव में वह साध्वी मुझसे मिलने आई। नाम मुझे कुछ पहचाना हुआ मालूम पड़ा, तो मैंने उससे पूछा कि क्या हेमचन्द्र के ऊपर योगशास्त्र तुम्हीं ने लिखा?
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उसने कहा, मैंने ही लिखा।
तो मैंने उससे पूछा, तुम मेरे पास किसलिए आई हो?
उसने कहा, ध्यान सीखने आई हू।
तुमने तो ध्यान और योग पर इतनी अच्छी किताब लिखी।
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उसने कहा, वह बस, शास्त्र को पढ़कर लिखी है। जानकारी मुझे कुछ भी नहीं है। अपनी जानकारी नहीं है। खुद नहीं जाना है। और अब मैं उस किताब को लिखकर बड़ी मुश्किल में पड़ गई हू। लोग मेरे पास पूछने आते हैं। और मैं उनको बताती हू कि कैसे ध्यान करो। अब यह तो आपसे मैं निजी, एकांत में कह रही हूं मुझे ध्यान का अ, ब, स भी नहीं आता। आप मुझे सिखाएं।
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यह चल रहा है। बहुत जोर से चल रहा है। सदा से चलता रहा है एक अर्थों में।
अगर ध्यान की जानकारी से अभी तृप्ति न हो गई हो, तो जहां ध्यान की वर्षा हो रही है, वहा भी तुम ध्यान के संबंध में कुछ सीखकर लौट जाओगे, ध्यान न सीख पाओगे। क्योंकि ध्यान के संबंध में जानना, ध्यान जानना नहीं है। ध्यान जानना तो एक बड़ी क्रांति है। ध्यान जानने का तो अर्थ है, तुम्हारा आमूल रूपांतरण। वह तो एक अनुभव है। उस अनुभव में तो जानकारी बिलकुल जल जाती है। तुम ही बचते हो खालिस। सोना ही बचता है, कूड़ा - करकट जल जाता है।
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गुरु देता है ध्यान, इसका अर्थ है कि गुरु छीन लेता है ज्ञान। और जहां तुम्हें ऐसा गुरु मिले, जो तुमसे ज्ञान छीनता हो, वहां हिम्मत करके रुक जाना। क्योंकि वहां से भागने का मन होगा। क्योंकि यहां हम तो कुछ लेने आए थे, उल्टा और गंवाने लगे।
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आदमी लेने के लिए घूम रहा है। कहीं से भी कुछ मिल जाए तो थोड़ा और अपनी सम्पति बढ़ा ले। अपनी तिजोड़ी में थोड़ी जानकारी और रख ले, थोड़ा और पंडित हो जाए। एक जर्मन खोजी रमण के पास आया और उसने कहा, कि मैं आपके चरणों में आया हू कुछ सीखने। आप मुझे सिखाएं। रमण ने कहा, तुम गलत जगह आ गए। अगर सीखना है, तो कहीं और जा ओ। अगर भूलना है, तो हम राजी हैं।
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रमण के वचन हैं, इफ यू हैव कम टु लर्न देन यू हैव कम टु दि रांग परसन। इफ यू आर रेडी टु अनलर्न देन आई एम रेडी टू हेल्प यू अनलर्न ! अगर अन - सीखने को राजी हो अगर सीखने को आए हो - कहीं और। खोजो कोई शिक्षक। अगर अन - सीखना करने आए हो, सीख चुके बहुत, थक गए, अब इस कचरे से छुटकारा पाना है - तो गुरु राजी है।
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ध्यान, जो तुमने जाना है अब तक, उसके भूल जाने का नाम है। अब यह बड़े मजे की बात है। जिस दिन तुमने जो - जो जाना है, उसे तुम बिलकुल विस्मरण कर दोगे, उस दिन तुम्हें आत्म - स्मरण आएगा। क्योंकि वह जो तुमने जाना है, उसी के कारण तुम्हें अपना पता नहीं चल पा रहा है। तुम्हारे और तुम्हारे जानने के बीच में तुम्हारी जानकारी की दीवाल खड़ी हो गई है।