🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
*दादू राम कहे सब रहत है, जीव ब्रह्म की लार ।*
*राम कहे बिन जात है, रे मन हो होशियार ॥*
.
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
==============
*(२)ईश्वर-दर्शन का उपाय*
इधर कीर्तन का आयोजन हो रहा है । अनेक भक्त जुट गये हैं । पंचवटी से कीर्तन का दल दक्षिण की ओर आ रहा है । हृदय शहनाई बजा रहा है । गोपीदास मृदंग तथा अन्य दो व्यक्ति करताल बजा रहे हैं । श्रीरामकृष्ण गाना गाने लगे –
.
संगीत - (भावार्थ) –
"रे मन ! यदि सुख से रहना चाहता है तो हरि का नाम ले । हरिनाम के गुण से सुख से रहेगा, वैकुण्ठ में जायगा, सदा मोक्षफल प्राप्त करेगा । जिस नाम का जप शिवजी पंचमुखों से करते हैं, आज तुझे वही हरिनाम दूँगा ।"
श्रीरामकृष्ण सिंह-बल से नृत्य कर रहे हैं । अब समाधिमग्न हो गये ।
समाधि-भंग होने के बाद कमरे में बैठे हैं । केशव आदि के साथ वार्तालाप कर रहे हैं ।
.
श्रीरामकृष्ण - सभी पथों से उन्हें प्राप्त किया जा सकता है - जैसे, तुममें से कोई गाड़ी पर, कोई नौका पर, कोई जहाज पर सवार होकर और कोई पैदल आया है - जिसकी जिसमें सुविधा और जिसकी जैसी प्रकृति है, वह उसी के अनुसार आया है । उद्देश्य एक ही है । कोई पहले आया, कोई बाद में ।
.
"उपाधि जितनी दूर रहेगी, उतना ही वे निकट अनुभूत होंगे । ऊँचे ढेर पर वर्षा का जल नहीं इकट्टा होता, नीची जमीन में होता है । इसी प्रकार जहाँ अहंकार है, वहाँ पर उनका दयारूपी जल नहीं जमता । उनके पास दीनभाव ही अच्छा है ।
"बहुत सावधान रहना चाहिए, यहाँ तक कि वस्त्र से भी अहंकार होता है । तिल्ली के रोगी को देखा, काली किनारवाली धोती पहनी है और साथ ही निधुबाबू की गजल गा रहा है !
.
"किसी ने बूट पहना नहीं कि मुँह से अंग्रेजी बोली निकलने लगी ! यदि कोई छोटा आधार हो तो गेरुआ वस्त्र पहनने से अहंकार होता है । उसके प्रति सम्मान प्रदर्शन करने में जरासी त्रुटि होने पर उसे क्रोध, अभिमान होता है ।
.
"व्याकुल हुए बिना उनका दर्शन नहीं किया जा सकता । यह व्याकुलता भोग का अन्त हुए बिना नहीं होती । जो लोग कामिनीकांचन के बीच में हैं, जिनके भोग का अन्त नहीं हुआ, उनमें व्याकुलता नहीं आती ।
.
"उस देश (कामारपुकुर) में जब मैं था, हृदय का चार-पाँच वर्ष का लड़का सारा दिन मेरे पास रहता था, मेरे सामने इधर उधर खेला करता था, एक तरह से भूला रहता था । पर ज्योंही सन्ध्या होती वह कहने लगता - 'माँ के पास जाऊँगा ।' मैं कितना कहता - 'कबूतर दूँगा' आदि आदि, अनेक तरह से समझाता, पर वह भूलता न था, रो-रोकर कहता था – ‘माँ के पास जाऊँगा ।’ खेल, खिलौना कुछ भी उसे अच्छा नहीं लगता था । मैं उसकी दशा देखकर रोता था ।
.
"यही हैं बालक की तरह ईश्वर के लिए रोना ! यही है व्याकुलता ! फिर खेल, खाना-पीना कुछ भी अच्छा नहीं लगता । यह व्याकुलता तथा उनके लिए रोना, भोग के क्षय होने पर होता है ।"
सब लोग विस्मित होकर इन बातों को सुन रहे हैं ।
सायंकाल हो गया है, बत्तीवाला बत्ती जलाकर चला गया । केशव आदि ब्राह्म भक्तगण जलपान करके जायेंगे । जलपान का आयोजन हो रहा है ।
.
केशव - (हँसते हुए) - आज भी क्या लाई-मुरमुरा है ?
श्रीरामकृष्ण – (हँसते हुए) - हृदय जानता है ।
पत्तल बिछाये गये । पहले लाई-मुरमुरा, उसके बाद पूड़ी और उसके बाद तरकारी । (सभी हँसते हैं) सब समाप्त होते होते रात के दस बज गये ।
.
श्रीरामकृष्ण पंचवटी के नीचे ब्राह्म भक्तों के साथ फिर बातचीत कर रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण - (हँसते हुए, केशव के प्रति) - ईश्वर को प्राप्त करने के बाद गृहस्थी में भलीभाँति रहा जा सकता है । बूढ़ी* (ढाई) को पहले छू लो, और फिर खेल करो ।(*बच्चों के एक खेल में एक बालक 'चोर' बनता है, जो एक खूंटी के पास रहता है और अन्य बालक इधर-उधर रहते हैं । वह 'चोर' बालक जिस बालक को छुएगा, वही 'चोर' बनेगा । लेकिन जिसने उस खूँटी को छू लिया वह फिर 'चोर' नहीं बन सकता । उस खूँटी को बूढ़ी कहते हैं ।)
.
"ईश्वर-प्राप्ति के बाद भक्त निर्लिप्त हो जाता है, जैसे कीचड़ की मछली - कीचड़ के बीच में रहकर भी उसके बदन पर कीच नहीं लगता ।"
लगभग ११ बजे रात का समय हुआ, सभी जाने की तैयारी में हैं । प्रताप ने कहा, ‘आज रात को यहीं पर रह जाना ठीक होगा ।’
श्रीरामकृष्ण केशव से कह रहे हैं, 'आज यहीं रहो न ।'
केशव - (हँसते हुए) - काम-काज है, जाना होगा ।
.
श्रीरामकृष्ण - क्यों जी, तुम्हें क्या मछली की टोकरी की गन्ध न होने से नींद न आयगी ? एक मछलीवाली रात को एक बागवान के घर अतिथि बनी थी । उसे फूलवाले कमरे में सुलाया गया, पर उसे नींद न आयी । वह करवटें बदल रही थी, उसे देख बागवान की स्त्री ने आकर कहा, 'क्यों री, सो क्यों नहीं रही हो ?' मछलीवाली बोली, 'क्या जानूँ बहन, शायद फूलों की गन्ध से नींद नहीं आ रही है । क्या तुम जरा मछली की टोकरी मँगा सकती हो ?'
.
“तब मछलीवाली मछली की टोकरी पर जल छिड़ककर उसकी गन्ध सूँघती सो गयी !" (सभी हँसे)
बिदा के समय केशव ने श्रीरामकृष्ण के चरणों में अपने द्वारा चढ़ाये हुए पुष्पों में से एक गुच्छा लिया और भूमि पर माथा लगाकर श्रीरामकृष्ण को प्रणाम करके भक्तों के साथ कहने लगे, 'विधान की जय हो ।'
केशव ब्राह्मभक्त जयगोपाल सेन की गाड़ी में बैठे । वे कलकत्ता जायेंगे ।
(क्रमशः)