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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
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*१२. अथ विश्वास को अंग १/४*
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सुंदर तेरे पेट की, तोकौं चिंता कौंन ।
बिस्व भरन भगवंत है, पकरि बैठि तूं मौंन ॥१॥
योग क्षेम के निर्वाहक प्रभु : महाराज श्रीसुन्दरदासजी अज्ञानी पुरुष को समझा रहे हैं - अरे मूर्ख ! तूँ अपनी उदरपूर्ति की चिन्ता से क्यों व्यग्र है; इस का उत्तरदायित्व तो तेरे स्त्रष्टा उस विश्वम्भर भगवान् ने ले रखा है । तूँ तो एकान्त में बैठ कर मौन रह कर केवल उस भगवान् के पवित्र नाम का सतत स्मरण कर ॥१॥
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सुंदर चिंता मति करै, पांव पसारै सोइ ।
पेट दियौ है जिनि प्रभू, ताकौं चिंता होइ ॥२॥
अरे भाई ! तूँ उदरपूर्ति की चिन्ता क्यों कर रहा है ! यह चिन्ता तो उस प्रभु की ही है जिसने तुझ को यह पेट दिया है । तूँ तो पैर पसार कर (निश्चिन्त होकर) सो जा ॥२॥
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जलचर थलचर ब्योमचर, सबकौं देत अहार ।
सुंदर चिंता जिनि करै, निस दिन बारंबार ॥३॥
क्योंकि वह हमारा सिरजनहार जल, स्थल एवं आकाश में रहने वाले सभी प्राणियों को भोजन देता ही है । श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - अतः तूँ क्यों दिन रात अपनी उदरपूर्तिकी चिन्ता में लगा हुआ है । ऐसा न कर ॥३॥
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सुंदर प्रभुजी देत हैं, पाहन मैं पहुंचाइ ।
तूं अब क्यौं भूखौ रहै, काहै कौं बिललाइ ॥४॥
अरे ! वह प्रभु त्तो ऐसा समर्थ है कि पत्थर में रहने वाले प्राणी को भी भोजन पहुँचा देता है, तब तूँ कैसे भूखा रह पायगा । अतः तूँ इस के लिये व्यर्थ चिन्तित न हो ॥४॥
(क्रमशः)



















