रविवार, 19 अक्टूबर 2025

*७. काल चितावनी कौ अंग १३/१६*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
.
*७. काल चितावनी कौ अंग १३/१६*
.
मेरी मेरी करत है, तोकौं सुद्धि न सार । 
काल अचानक मारि है, सुन्दर लगै न बार ॥१३॥
तू सांसारिक वस्तुओं के लिय व्यामोह करता हुआ उन में ममत्व बांध रहा है: परन्तु तुं अपनी वास्तविकता पर न कभी चिन्तन करता है, न विचार । इसी बीच, तेरी मृत्यु आकर तुझे मार देगी । इस में उसको कुछ भी विलम्ब नहीं लगेगा ! ॥१३॥
.
मेरै मन्दिर माल धन, मेरौ सकल कुटुम्ब । 
सुन्दर ज्यौं कौ त्यौं रहै, काल दियौ जब बंब ॥१४॥
तूं अपने जिस माता पिता आदि कुटुम्ब में, घर द्वार में, चल अचल सम्पत्ति में ममत्व दिखा रहा है, वह सब कुछ उस समय यहीं रह जायगा जब तेरी मृत्यु, तेरे सम्मुख आकर, तुझ को पुकारेगी ॥१४॥
.
सुन्दर गर्ब कहा करै, कहा मरौरै मूंछ । 
काल चपेटौ मारि है, समझि कहूं के भूंछ ॥१५॥
तूं इन सांसारिक वस्तुओं के स्वत्व पर क्या अभिमान कर रहा है ! तथा इन के कारण गर्व करता हुआ अपनी मूंछ क्या मरोड़ रहा है ! अरे मूर्ख ! तूं उस समय का स्मरण कर, जब तेरी मृत्यु आकर तुझ पर झपट्टा(या थप्पड़) मारेगी ॥१५॥
.
यौं मति जानै बावरे, काल लगावै बेर । 
सुन्दर सबही देखतें, होइ राख की ढेर ॥१६॥
अरे पागल ! तूं यह न समझ कि किसी की मृत्यु आने में विलम्ब लगा करता है । हम तो ऐसे सभी प्राणियों को अपनी आंखों के सामने ही राख की ढेरी(राशि) बना हुआ देख रहे हैं ॥१६॥
(क्रमशः)

हमारी रक्षा का प्रबन्ध

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
.
७ आचार्य चैनराम जी ~ 
.
हम इसी कार्य के लिये यहां आये हैं और यह काम करके ही यहां से लोटेंगे । यह हमारा द्द़ढ निश्‍चय है । आप हमारी बात मान लेते हैं तब तो ठीक । नहीं मानेंगे तो हम मनाने के लिये सभी उपाय करेंगे, शस्त्रों से भी मनायेंगे किसी भी प्रकार हो आपको वैरागी बनाकर ही जायेंगे । 
.
बालानन्दजी के वचन सुनकर आचार्य चैनरामजी ने कहा - हम निर्गुण निर्गुण पुकारते हैं, यह तो आपका कहना ठीक ही है । किन्तु निर्गुण का पुकारना तो उपनिषद् काल से ही चला आया है । यदि निर्गुण ब्रह्म मिथ्या होता तो उपनिषद् कैसे पुकारते ? 
.
दूसरी वैरागी बनाने की बात आप कह रहे हैं तो अब हम गृहस्थ हैं क्या ? जो आप हमें वैरागी बनायेंगे । वैरागी तो राग रहित को कहते हैं । और राग रहित तो मन ही होता है । माला, तिलक, कंठी से तो वैरागी बनाना कठिन है । माला, तिलक, कंठी तो शरीर पर ही धारण कराओगे, मन पर उनका क्या प्रभाव पडेगा ? 
.
यदि उनका प्रभाव मन पर पडता हो तो फिर माला, तिलक, कंठी वालों का व्यवहार देख सकते हैं कि वे कैसे - कैसे व्यवहार करते हैं । देखने से ऐसा नहीं ज्ञात होता है कि माला, तिलक, कंठी वाले राग द्वैष से रहित हों । प्रत्यक्ष में आप अपने को ही देखिये - आप तो माला, तिलक, कंठी से युक्त हैं, तो भी राग, द्वैष आप में दिखाई दे रहा है । 
.
जो आप परिवर्तन करना चाहते हैं वह भी तो राग द्वैष से ही पूर्ण है । अत: प्रथम आप तो वैरागी बनें फिर हम को बनाना । यह सुनकर बालानन्दजी ने कहा - अच्छा अब देखना हम आपको कैसे वैरागी बनाते हैं । बालानन्दजी का उक्त वचन सुनकर आचार्य चैनरामजी ने कहा - अच्छा है यदि आप हमारा राग निकाल देंगे तो हम आप का उपकार ही मानेंगे । किन्तु राग निकालने की बात करने से राग निकालना अति कठिन है । आप अपना राग नहीं निकाल सके तब हमारा कैसे निकाल सकोगे ? 
.
यह सुनकर बालानन्दजी ने कहा - हम आपको माला, तिलक, कंठी देकर तथा वैरागी बनाकर ही यहां से जायेगें, यह हमारा दृढ निश्‍चय है । हमने यह पहले भी सुना दिया था और अब भी सुना रहे हैं । अब आप अपनी रक्षा करने का प्रबन्ध कर लेना । हम जाते हैं, ऐसा कहकर बालानन्दजी उठ खडे हुये । तब आचार्य चैनरामजी ने कहा - हमारी रक्षा का प्रबन्ध तो जिनका हम भजन करते हैं, वे निर्गुण परब्रह्म ही करेंगे । 
(क्रमशः)

शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025

*७. काल चितावनी कौ अंग ९/१२*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
.
*७. काल चितावनी कौ अंग ९/१२*
.
सुन्दर मछरी नीर मैं, बिचरत अपने ख्याल । 
बगुला लेत उठाइ कै, तोइ ग्रसै यौं काल ॥९॥
कोई मछली सरोवर के निर्मल जल में निश्चिन्ततापूर्वक उछल कूद मचा रही है; परन्तु कोई बगुला उसके विषय में यही सोच रहा है कि कब यह असावधान हो तो मैं इसे खा जाऊँ ॥९॥ (३)
.
सुन्दर बैठी मक्षिका, मीठे ऊपर आई । 
ज्यौं मकरी वाकौं ग्रसै, मृत्यु तोहि लै जाइ ॥१०॥
या कोई मक्खी किसी मिठाई की दुकान पर मिठाई का रस चख रही है, परन्तु समीप ही दीवाल पर बैठी मकड़ी यही सोच रही है कि कब यह असावधान हो तो मैं इसे खा जाऊँ ॥१०॥ (४)
.
सुन्दर तोकौं मारि है, काल अचानक आइ ।
तीतर देखत ही रहै, बाज झपट ले जाइ ॥११॥
तथा रे अज्ञ प्राणी ! तेरी मृत्यु भी तुझे अकस्मात् आकर उसी प्रकार मार देगी जैसे कोई बाज पक्षी तीतर को, देखते ही देखते, झपट कर ले जाता है ॥११॥ (५)
.
सुन्दर काल जुरावरी, ज्यौं जाणैं त्यौं लेइ । 
कोटि जतन जौ तूं करै, तो हूं रहन न देह ॥१२॥
बलवती मृत्यु की महिमा : वह बलवती मृत्यु जब जैसे चाहती है वैसे ही किसी भी प्राणी को मार देती है । अतः तूं इसके विरुद्ध कितने भी यत्न करेगा उनमें तुझ को वह सफल नहीं होने देगी ॥१२॥
(क्रमशः) 

बालानन्द गडबड करेंगे

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
.
७ आचार्य चैनराम जी ~ 
.
आचार्य चैनरामजी उच्च कोटि के संत थे, उन्होंने ध्यान धर कर देखा तो कोटवाल की बात उनको सत्य ही ज्ञात हुई । बालानन्दजी के विचार को वे अच्छी प्रकार जान गये । कोटवाल से कहा - यह बात अभी ग्राम में नहीं फैलनी चाहिये तथा बालानन्द जी के साधुओं के साथ रसोई आदि का सामान देने में कोई कमी नहीं रखना तथा ऐसी कोई बात भी नहीं करना जिससे उनको विक्षेप हो ।  
.
फिर आचार्य जी ने अपने विश्‍वास पात्र व्यक्तियों को बुला कर जगमाल वंशज खंगारोत आदि क्षत्रियों को पत्र लिखकर उन अनेक व्यक्तियों को जगमालजी के वंशज सभी ठिकानों में उसी दिन भेज दिये । 
.
पत्रों में लिखा था - “बालानन्दजी बारह हजार शस्त्र धारी साधुओं को लेकर नारायणा दादूधाम की परंपरा को नष्ट करने आया है । बल से माला तिलक और अपनी कंठी नारायणा दादूधाम के आचार्य को बाँधकर वैरागी बनायेगा । दादू द्वारा आप लोगों का बनाया हुआ है तथा आप लोगों का गुरुद्वारा है । नारायणासिंह जी से ही चला आ रहा है । इसकी परंपरा की रक्षा करना भी आप लोगों का मुख्य काम है । शीघ्र ही आकर रक्षा करो । देर करने से बालानन्द गडबड करेंगे । आप सब का हितैषी आचार्य चैनरामजी । 
.
नारायणा दादूधाम दादूद्वारा उक्त पत्र अतिशीघ्रता से सब ठिकानों में पहुँच गये । पत्रों को पढ कर सभी जगमाल के वंशज और विशेषकर खंगारोतों में बिजली सी दौ़ड गई । वे क्षत्रिय वीर अपनी तलवारें उठा - २ कर प्रतिज्ञा करने लगे - हमारे रहते हुये बालानन्द दादू द्वारे की परंपरा को कैसे नष्ट कर सकता है । 
.
उन्होंने अपने सभी ग्रामों में अतिशीघ्र सूचना भेज दी कि दादू द्वारे की रक्षा के लिये सशस्त्र यूथ बनाकर नारायणा चलना है और शीघ्र ही चलना है । यह बात नारायणा के आसपास के ग्रामों में भी फैल गई । सभी ग्रामों के लोग नारायणा दादूधाम की परंपरा के पक्ष में थे । इधर बालानन्दजी दूसरे दिन अपने कुछ साधुओं को लेकर आचार्य चैनराम जी के पास गये । 
.
चैनरामजी ने अपने भंडारी आदि से उनका स्वागत सत्कार कराया । बालानन्दजी आचार्य जी से मिलकर उनके पास ही एक अन्य आसन पर बैठ गये । फिर आचार्य जी के सामने अपना प्रस्ताव रक्खा कि हम आपको वैरागी बनाने आये हैं । आप लोग निर्गुण निर्गुण पुकारते रहते हैं । किन्तु निर्गुण को किसने देखा है ? अत: निर्गुण को छोडकर हम से दीक्षा लो - माला, तिलक धारण करो और हमारी कंठी बाँधों । 
(क्रमशः) 

गुरुवार, 16 अक्टूबर 2025

बालानन्द जी का आना

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
.
७ आचार्य चैनराम जी ~ 
.
बालानन्द जी का आना ~ फिर बालानन्दजी ने वैष्णवों के चारों ही संप्रदायों के साधुओं को निमंत्रण दे देकर बुलाया और बारह हजार साधु एकत्र हो गये । तब वैष्णव धर्म का प्रचार करने का निमित्त लेकर भ्रमण करते हुये नारायणा दादूधाम में आ पहुँचे । नारायणा दादूधाम से उत्तर की ओर अपनी छावणी डाली । वहां साधु लोग अपने - २ छाते, तंबू आदि तानने लगे । 
.
उनको देखकर स्थानीय साधुओं ने चैनरामजी महाराज को कहा - आज तो वैरागी साधुओं की बहुत बडी जमात आई है । साधुओं का उक्त वचन सुनकर आचार्य चैनरामजी ने कहा - वैरागी स्वयं पाकी होते हैं । भंडार में जीमें या नहीं भी जीमें भंडार से उनको सूखा सामान दे देना और भंडार में जीमें तो आप लोग उनका प्रबन्ध कर सको तो भंडार में बुलाकर जीमा देना । 
.
भंडारी ने कहा - महाराज ! उनको तो सूखा सामान ही देना चाहिये । वे इसी में प्रसन्न होते हैं । आचार्य चैनरामजी ने कहा - बहुत अच्छा संत जिससे प्रसन्न हों वही अपने करना हैं । फिर आचार्य चैनरामजी ने अपने कोटवाल को कहा जमात के महन्त को मेरी सत्यराम कहकर कहना - सब संतों के लिये रसोई का सामान दादूद्वारे के भंडार से ले जायें और कोई विशेष सेवा हो तो वह भी सूचित करें जिससे वह भी कर दी जायगी । 
.
फिर कोटवाल महाराज को सत्यराम करके छावनी में गया और बालानन्दजी को सत्यराम प्रणाम कर के कहा - दादूद्वारे के आचार्य जी ने आप सब संतों को सत्यराम कहा है और कहा है - रसोई का सब सामान सब संतों के लिये दादू द्वारे के भंडार से ही लावें तथा अन्य कोई सेवा हो तो सूचित करें जिससे वह भी की जाय । महाराज ने कहा है सेवा बताने में संकोच नहीं करना ।
.
कोटवाल की उक्त बात सुनकर बालानन्दजी ने कहा - ठीक है । मेरा भी आचार्य जी को सीताराम कहना और विशेष सेवा तो आचार्य जी के पास आकर मैं ही उनको कहूंगा, तुमको बताने की नहीं है । फिर कोटवाल ने कहा - बहुत अच्छा सत्यराम अब आपकी छावनी के सब संतों का दर्शन करके लौट रहा हूँ । आप रसोई के सामान के लिये साधुओं को भेज देना । 
.
फिर वह छावनी के सब संतों के दर्शन के निमित्त से इधर उधर फिरा तो उसने प्रत्येक साधु के आसन पर नाना प्रकार के शस्त्र देखे । फिर एक भोले से साधु को एकांत में ले जाकर पूछा - यहां से आप लोग कहाँ जायेंगे ? उसने कहा - यहां ही आये हैं । दादूद्वारे के आचार्य को माला, तिलक और कंठी देकर वैरागी बनाने के लिये । 
.
कोटवाल ने पूछा - ये इतने शस्त्र क्यों लाये ? हैं । उसने कहा - बालानन्द जी दृढ़ निश्‍चय करके लाये हैं, वैसे वैरागी नहीं बनेंगे तो शस्त्रों से मार के बनायेंगे । इसीलिये शस्त्र लाये हैं कोटवाल उस साधु की बातें सुनकर तथा उनके सब रंग ढंग को देख कर शीघ्र ही आचार्य चैनरामजी के पास आया और एकांत में उक्त बातें उनको सुनाई । 
(क्रमशः) 

*७. काल चितावनी कौ अंग ५/८*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
.
*७. काल चितावनी कौ अंग ५/८*
.
सुन्दर काल प्रवीण अति, तूं कछु समुझै नांहिं । 
तूं जानैं जीवत रहूं, वहु मारै पल माहिं ॥५॥
तेरी मृत्यु, इस विषय में, बहुत चतुर है । तूं उसकी चतुराई को नहीं समझ पायगा । तूं सोचता है कि तूं दीर्घकाल तक जीवित रहे; परन्तु तेरी मृत्यु तुझे इसी क्षण मार देना चाह रही है ॥५॥
.
सुन्दर तेरी और कौं, ताकि रहे जमदूत । 
बैरी बैठै बारनैं, तूं सोवै किंहिं सूत ॥६॥
महात्मा श्रीसुन्दरदासजी कहते है - तुझे ले जाने के लिये आये ये यमदूत तेरी ओर ही एक टक देख रहे हैं । अरे ! मूर्ख ! तेरा वैरी तेरे घर के दरवाजे पर बैठा है, फिर भी तू इतना निश्चिन्त(सूत) होकर पैर पसारे हुए सो रहा है ! ॥६॥
.
सुन्दर सूवा पींजरै, केलि करै दिन राति । 
मिनकी जानैं खांव कब, ताकि रही इहिं भांति ॥७॥
पांच दृष्टान्तों से तत्काल मृत्यु की चेतावनी : जैसे कोई तोता अपने पिंजरे में विविध प्रकार से खेल रहा है; परन्तु उसके सामने छिपकर बैठी हुई बिल्ली के रूप में उस की मृत्यु निरन्तर यह सोच रही है कि कब यह असावधान हो कि मैं इसे खा जाऊँ ॥७॥ (१)
.
सुन्दर मूसा फिरत है, बिल तें बाहिर आइ । 
काल रह्यौ अहि ताकि करि, कबहुंक लेइ उठाइ ॥८॥
कोई चूहा अपने बिल से निकल कर निश्चिन्त होकर इधर उधर घूम रहा है; परन्तु वहीं उसकी मृत्यु के रूप में छिप कर बैठा सर्प निरन्तर यही सोच रहा है कि यह चूहा कब कुछ भी असावधान हो तो मैं इसे अपने भोजन का ग्रास बना लूं ॥८॥ (२)
(क्रमशः) 

आचार्य को माला तिलक कंठी

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
.
७ आचार्य चैनराम जी ~ 
.
उन बालानन्द जी के मन में विचार उठा कि इस समय दादू पंथ में अच्छे - २ विरक्त और भजनानन्दी संत देखे जाते हैं किन्तु सब निर्गुण पुकारते रहते हैं । वह समाज हमारे में आ जाय तो हमारे समाज की अच्छी उन्नति हो सकती है । यह सोचकर बालानन्द जी ने अपने साथी कुछ अन्य साधुओं को अपना विचार सुनाया । 
.
तब बहुतों ने तो बालानन्द जी की हां में हां मिला दी किन्तु कुछ वृद्ध संतों ने कहा - आपका यह विचार ठीक नहीं है । कारण - यह उपाय गलता वालों ने दादूजी के समय में भी बहुत किया था । तब तो दादूजी और उनके कुछ शिष्य ही थे । तब भी वे सफल नहीं हो सके थे । अब तो दादूपंथ बहुत बडा समाज है, उस पर आप कैसे विजयी हो सकेंगे ।
.  
उक्त वचन सुनकर बालानन्दजी ने कहा - उस समय एक तो दादू जी ही समर्थ संत थे और दूसरे आमेर नरेश भगवतदास उनका परमभक्त था । इससे उनपर बल प्रयोग नहीं हो सकता था । इसी कारण गलता वालों को सफलता नहीं मिली थी । किन्तु अब वह बात नहीं है । 
.
अब जयपुर नरेश जैसे नारायणा दादूधाम पर श्रद्धा रखता है वैसे हमारे पर भी श्रद्धा रखता है । इससे वह तो साधओं के बीच में पडेगा नहीं । फिर भी वृद्ध संतों ने कहा - दादूपंथी नागों की जमातें घूमती हैं, वे भी तो शस्त्रकला को जानती हैं और उनमें बडे - २ वीर भी सुने जाते हैं । उनमें लोहा लेना पडेगा । वे आपकी आशा कैसे पूर्ण होने देंगे । 
.
बालानन्द जी ने कहा यह तो ठीक है किन्तु वे जमातें दूर दूर तक घूमने जाती हैं और बहुत समय के पश्‍चात् नारायणा के मेले पर इधर आती हैं । अत: हम ऐसा अवसर देखेंगे कि नागों की जमातें बहुत दूर होंगी, उसी समय हम जाकर नारायणा धाम के आचार्य को माला तिलक कंठी आदि वैष्णवों के चिन्ह देकर वैरागी बना लेंगे  
.
फिर भी वृद्ध संतों ने कहा - हमारे ध्यान में तो नहीं आता है कि आप इस कार्य में सफल हो जायें । किन्तु बालानन्द जी ने वृद्ध संतों के वचनों पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया और निश्‍चय कर लिया कि नारायणा दादूधाम के आचार्य चैनरामजी को माला, तिलक, कंठी अवश्य दे देनी है । 
.
चैनरामजी वैसे भी सरल स्वभाव के हैं, वे हमारे बहुत बडे समाज को देखकर ही डर जायेंगे और हम कहेंगे वैसा ही उनको करना पडेगा । और एक बार माला तिलक कंठी धारण करने के पश्‍चात् उतार देंगे तो हम उनको निगुरा कह - कह कर अपमानित करेंगे । उक्त प्रकार बालानन्दजी ने अपना निश्‍चय दृढ कर लिया ।  
(क्रमशः)

*७. अथ काल चितावनी कौ अंग १/४*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
.
*७. अथ काल चितावनी कौ अंग १/४*
.
काल ग्रसत है बावरे, चेतत क्यौं न अजांन ।
सुन्दर काया कोट मैं, होइ रह्या सुलतांन ॥१॥ 
मृत्युविषयक चेतावनी : अरे अज्ञानी पुरुष ! तेरी मृत्यु तुझे अपना ग्रास(भोजन) बनाने की सोच रही है, तूं सावधान क्यों नहीं होता । तूं अपने शरीररूप दुर्बल किले में बैठा हुआ स्वयं को बहुत बलशाली राजा मान रहा है ! ॥१॥
.
सुन्दर काल महाबली, मारे मोटे मीर ।
तूं कौनैं की गिनति मैं, चेतत काहि न बीर ॥२॥
अरे ! यह मृत्यु अतिशय बलशाली है । इसने बडे बडे राजा महाराजाओं को मार गिराया है । तब तुझ दुर्बल प्राणी की उस के सामने क्या स्थिति है ! अतः मेरे भाई ! तूं अब भी सावधान हो जा ॥२॥
.
सुन्दर काल गिराइ दे, एक पलक मैं आइ । 
तूं क्यौं निर्भय ह्वै रह्यौ, देखि चल्यौ जग जाइ ॥३॥
महात्मा श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - वह मृत्यु एक क्षण में यहाँ आकर तुझ को मार गिरायगा । तूं निश्चिन्त(निर्भय) होकर क्यों बैठा है ! तूं देख नहीं रहा कि उस के मारे हुए संसार के प्राणी तेरी आंखों के सामने(दूसरी योनियों से) जा रहे हैं ॥३॥
.
सुन्दर चितवै और कछु, काल सु चितवै और । 
तूं कहुं जाने की करै, वहु मारै इहिं ठौर ॥४॥
अरे अज्ञ प्राणी ! तूं कुछ अन्य प्रकार से ही विचार कर रहा है, तथा तेरी मृत्यु का चिन्तन कुछ दूसरा है । तूं अपनी किसी लम्बी योजना की पूर्ति के लिये कहीं जाने की योजना बना रहा है, परन्तु तेरी मृत्यु तुझे इसी समय यहीं मारने की सोच रही है ॥४॥
(क्रमशः) 

मंगलवार, 14 अक्टूबर 2025

*६. उपदेश चितावनी कौ अंग ५३/५५*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
.
*६. उपदेश चितावनी कौ अंग ५३/५५*
.
दीया राखै जतन सौं, दीये होइ प्रकाश ।
दीये पवन लगै अहं, दीये होइ बिनाश ॥५३॥    
यदि तुम गुरु-उपदेश पूर्वक यत्न से दीपक की व्यवस्था कर लोगे तो तुम उस दीपक से प्रकाश(ज्ञान) भी अवश्य प्राप्त कर सकोगे । यदि तुम्हारे दीपक(ज्ञान) में सांसारिक अभिमान को पवन(वायु) का झोंका लग गया तो तुम्हारा दीपक तत्काल बुझ(विनष्ट हो) जायगा ॥५३॥
.
सांई दीया है सही, इसका दीया नांहिं । 
यह अपना दीया कहै, दीया लखै न मांहिं ॥५४॥
भगवान् स्वसंवेदन से ही ज्ञेय(प्रकाशित होने योग्य) है, वह किसी अन्य ज्ञान से ज्ञेय नहीं है । (अर्थात् इस को प्रकाशित करने वाला कोई अन्य ज्ञान नहीं होता ।) वह अपनी स्थिति हमारे(हृदय) में बताता तो रहता है, परन्तु उसे हम समझ नहीं पाते ॥५४॥
.
सांई आप दिया किया, दीया मांहिं सनेह । 
दीये दीये होत है, सुन्दर दीया देह१ ॥५५॥
इति उपदेश चितावनी कौ अंग ॥६॥
भगवान् ने ज्ञानरूप दीपक हमारे हृदय में प्रज्वलित कर दिया, उसमें स्नेह(भक्तिरूप तैल) भर दिया । दीपक(गुरु-ज्ञान) से दीपक जलता है(शिष्य को गुरुज्ञान से ज्ञान होता है) । तब शिष्य(का हृदय) भी ज्ञानमय हो जाता है । यही परम्परागत ज्ञानधारा कहलाती है ॥५५॥

उपदेश चितावनी का अंग सम्पन्न ॥६॥
(क्रमशः) 

३५०५ मण नमक प्रति वर्ष

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
.
७ आचार्य चैनराम जी ~ 
.
चैनरामजी महाराज सौम्य मूर्ति थे, अति दयालु सर्व हितैषिता आदि संतों के गुण उनमें पूर्ण रुप से विकसित हो गये थे । अत: उनके दर्शन वचन से क्या राजा क्या रंक सबको ही आनन्द मिलता था । उक्त प्रकार आपको जी भी बुलाते थे उनके यहां अपनी मर्यादा से ही जाते थे । 
.
वि.सं. १८१८ माघ शुक्ला चतुर्थी को जोधपुर नरेश के यहां से सांभर से ३५०५ मण नमक प्रति वर्ष दादू द्वारे में बिना कीमत दिया जाने का पट्टा होकर आचार्य चैनरामजी के पास आया था । जोधपुर नरेश नमक ही नहीं अन्न भी सदाव्रत के लिये उक्त नमक के समान ही अथार्त् नमक जितने अन्न में काम आये उतना अन्न भी नारायणा दादूधाम में पहुँचा देते थे । 
.
मेडता भंडार खर्च के लिये जोधपुर नरेश ने ढाई ग्राम दिये थे । वे ग्राम चैनरामजी महाराज नारायणा दादूधाम में पधार गये तब परम विरक्त चैनरामजी महाराज ने जोधपुर नरेश को पीछे लौटा दिये । 
.
मेडता में नारायणा दादूधाम की गायें रहती थी और स्थान रक्षा और गो सेवा के लिये कुछ साधु भी रहते थे । अत: ५५४ बीघा गोचर भूमि गोओं के चरने के लिये रख ली थी । इससे जोधपुर नरेश आप के त्याग से प्रभावित थे और समय - २ पर दादूद्वारे की सेवा करते ही रहते थे ।
.
चैनरामजी महाराज के आचार्य काल में एक विरजानन्द रामानन्दी के शिष्य बालानन्द नामक वैरागी साधु बहुत प्रभावशाली थे । उनके बहुत शिष्य भी थे । जयपुर में उनका स्थान चांदपोल दरवाजा से कुछ दूर नाहरगढ के पर्वत की ओर है । वह बहुत बडा स्थान है और बालानन्द जी के स्थान के नाम से ही प्रसिद्ध है । 
(क्रमशः) 

चैन पधारत पंथ में

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
.
७ आचार्य चैनराम जी ~ 
.
दोहा - चैन पधारत पंथ में, चली सु चैन तरंग ।
भेद भ्रांति विग्रह सभी, हुये शीघ्रतर भंग ॥१॥
समय समय पर निमंत्रण, आवें जावें चैन ।
सबहिं सुखद आचार्य के, सुने सु मीठे बैन ॥२॥(नारायणा)
.
अब समाज में एकता होने से परस्पर प्रेम का व्यवहार होने लगा और समय समय पर अपने पूज्य आचार्य को अपने अपने स्थानों पर निमंत्रण देकर बुलाने लगे । यथा योग्य सेवा करते हुये आचार्य जी के सुमधुर उपदेश सुनने लगे । रामस्थान के राजा लोग भी नारायणा दादूधाम के आचार्य को समय समय पर बुलाते थे और दादूवाणी के गंभीर उपदेश श्रवण करते थे । 
.
मुंशी देवीप्रसाद द्वारा लिखित - “मरदुम सुमारी राज मारवाड” तीसरा हिस्सा में लिखा है - “नराणे के महन्तों का जयपुर और जोधपुर में यह कुरब है कि खास रुक्कों से तो बुलाते हुये आते हैं और उनको लेने को सरदार और दीवान वगैरा राजधानी के दरवाजे के बाहर तक जाते हैं ।
.
डेरे पर महाराजा साहिब भी उनसे मिलने को पधारते हैं ।” उक्त लेख से ज्ञात होता है कि उक्त बडे राजाओं के समान ही सब छोटे राजा भी नारायणा दादूधाम के आचार्य को बुलाते थे और उक्त प्रकार ही समादर करते थे । वि.सं. १८२४ में जयपुर नरेश सवाई माधोसिंहजी प्रथम ने नारायणा दादूधाम के आचार्य चैनरामजी महाराज को निमंत्रण देकर जयपुर बुलाया था तब शिष्य मंडल के सहित आप जयपुर पधारे ।
.
जयपुर नरेश ने आपका राजकीय सत्कार साम्रगी से स्वागत किया था और स्वयं महाराज के पास जाकर अपनी पूर्व नरेशों की रीति के अनुसार ही स्वर्ण मुद्रा भेंट की थी । और जितने दिन रहे उतने दिन सर्व प्रकार सेवा का प्रबन्ध किया और जाते समय नारायणा दादूधाम के सदाव्रत के लिये धनराशि दी थी । 
(क्रमशः)  

*६. उपदेश चितावनी कौ अंग ४९/५२*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
.
*६. उपदेश चितावनी कौ अंग ४९/५२*
.
सुन्दर सुख की चाह करि, कर्म करे बहु भांति । 
कर्मनि कौ फल दुःख है, तूं भुगतै दिन राति ॥४९॥
यद्यपि सभी प्राणी सुख की इच्छा से ही सब कार्य आरम्भ करते हैं; परन्तु सभी कर्म परिणाम में दुःखदायी होते हैं । उन ही दुःखदायी कर्मों का परिणाम तूँ दिन रात भोग रहा है ॥४९॥ 
.
तैं नर सुख कीये घने, दुख भोगये अनंत । 
अब सुख दुख कौ पीठि दें, सुन्दर भजि  भगवंत ॥५०॥ 
इसी प्रकार, सभी प्राणी अपने अपने विविध जन्मों में किये गए कर्मों के फलस्वरूप ये अनंत सुख दुःख भोग रहे हैं । अब तूं इन क्षणिक सुखदुख की प्राप्ति का भ्रम सर्वथा त्याग कर प्रभु में लग जा ॥५०॥   
.
दीया१ की बतियां कहै, दीया किया न जाइ ।
दीया करै सनेह करि, दीयें ज्योति दिखाइ ॥५१॥
संसार केवल दीपक(ज्ञान) की बात करता है, परन्तु दीपक का पूर्ण निर्माण नहीं कर पा रहा । दीपक की वास्तविकता स्नेह(तैल) से मानी जाती है; क्योंकि दीपक में स्नेह होने पर ही वह संसार को ज्योति(प्रकाश-ज्ञान) दिखा पाता है ॥५१॥ 
.
दीयें ते सब देखिये, दीये करौ सनेह ।
दीये दसा प्रकासिये, दीया करि किन लेह ॥५२॥ 
किसी भी दीपक(के प्रकाश) से सभी ओर की वस्तु को तभी देखा जा सकता है जब उस में स्नेह(तैल) डालोगे । तूं भी अपने दीपक में स्नेह का प्रयोग क्यों नहीं करता ! (अर्थात् प्रेमा भक्तिपूर्वक भगवद्भजन क्यों नहीं करता) ॥५२॥
(क्रमशः)

रविवार, 12 अक्टूबर 2025

गादी दीन्ही चैन को

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
.
७ आचार्य चैनराम जी ~ 
.
गंगारामजी के उक्त वचन सुनकर उन आये हुये महन्त, सन्त आदि समाज के मुखिया व्यक्तियों ने परपर परामर्श करके गंगाराम जी को चैनराम जी की आज्ञानुसार आचार्यों की स्मारक छत्रियों का महन्त बना दिया और उनकी उचित मर्यादा भी बाँध दी । फिर गंगारामजी गद्दी को छोडकर बाग में चले गये और वहां ही रहने लगे । 
.
कहा भी है -  
“दुविधा देखी पंथ में, गंगाराम विचार । 
गादी दीन्ही चैन को, वन(बाग) में जा बैठार ॥
अठारासै वारोत्तारो, गंगाराम वन जाय ।
ता के पीछे चैनजी, इक छत राज कराय ॥२॥
(दौलतराम)
उक्त दूसरे दोहे से ज्ञात होता है कि - गंगाराम जी वि.सं. १८१२ में गद्दी छोडकर छत्रियों के महन्त बने थे और कृपाराम जी गृहस्थ होने पर भी भंडारी बने ही रहे थे ।
.
गंगारामजी की परंपरा पाखर में है और कृपारामजी भेष भंडारी की परंपरा कैरे ग्राम है । गंगारामजी गद्दी छोड कर छत्रियों के महन्त बन गये तब समाज ने चैनरामजी महाराज से प्रार्थना की कि भगवन् ! आपकी आज्ञानुसार ही व्यवस्था हो गई है । गंगाराम जी ने सहर्ष आपके लिये गद्दी छोड दी है । 
.
समाज ने उनको आचार्य परंपरा की छत्रियों का महन्त बना दिया है । वे अब बाग में जहां छत्रियां बनाने की योजना है उन छत्रियों के स्थान के पास ही रहने लग गये हैं, अब आप नारायणा दादूधाम में शीघ्र ही पधारें । यह उक्त वचन सुनकर चैनरामजी महाराज ने नारायणा दादूधाम में आना स्वीकार कर लिया । 
.
फिर उनके आगमन के समय नारायणा दादूधाम से बाजे गाजे बजाते हुये बडी धूमधाम से तथा संकीर्तन आदि मंगलमय कार्यक्रम से समाज ने चैनरामजी महाराज का सामेला किया अर्थात् सामने जाकर मिले, और पूर्ण सत्कार पूर्वक दादूद्वारा में लाकर गद्दी पर बैठाया और उच्च स्वर से सब समाज ने दादूजी महाराज की जय बोली । 
.
फिर सब ने अपनी - २ मर्यादा के साथ भेंट चढाकर दंडवत की । पश्‍चात् भेंट चढाने वालों को भेंट के समान प्रसाद दिया । उक्त प्रकार चैनरामजी महाराज मेडता से नारायणा दादूधाम में पधारे ।
(क्रमशः) 

*६. उपदेश चितावनी कौ अंग ४५/४८*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
.
*६. उपदेश चितावनी कौ अंग ४५/४८*
.
सुन्दर ठग्यौ अनेक बर, साबधान अब होह ।
हीरा हरि कौ नाम लै, छाडि बिषै सुख लोह ॥४५॥
अरे भाई ! तूं यहां पहले बहुत बार ठगा चुका, अब उस से सावधान हो जाना ही तेरे लिए हितकर है । अब तो तुझे विषयभोगरूप लोह का परित्याग कर, भगवद्भजन रूप हीरा की ही खरीद करनी चाहिये ॥४५॥
.
सुन्दर सुख कै कारनै, दुःख सहै बहु भाइ ।
को खेती को चाकरी, कोइ बणज कौं जाइ ॥४६॥
तीन सांसारिक कृत्य : अरे ! कृत्रिम सुख की प्राप्ति के लोभ में तुमने पहले जन्मों में बहुत दुःख सह लिये हैं । १. कभी तुमने यहाँ खेती की, २. कभी किसी की नौकरी की, ३. कभी तुमने विविध प्रकार का वाणिज्य(व्यापार) किया ॥४६॥
.
पराधीन चाकर रहै, खेती मैं संताप ।
टोटौ आवै बणज मैं, सुन्दर हरि भजि आप ॥४७॥
इन से उत्तम हरिभजन : परन्तु ये उक्त तीनों ही कार्य परिणाम में दुःखदायी ही होते हैं । नौकरी में पराधीनता(गुलामी) होती है, खेती में शारीरिक कष्ट अधिक होता है, व्यापार में आर्थिक हानि का भय रहता है; परन्तु हरिभजन में न किसी की पराधीनता है, न कोई शारीरिक दुःख, न कोई व्यापारिक हानि का भय । अतः तेरा हरिभजन में लग जाना ही मङ्गलमय रहेगा ॥४७॥
.
सुख दुख छाया धूप है, सुन्दर कर्म सुभाव ।
दिन द्वै शीतल देखिये, बहुरि तप्त में पांव ॥४८॥
अरे भाई ! ये सुख दुःख तो छाया एवं धूप के समान क्षणिक(विनाशी) है तथा ये सभी कर्मों के स्वभाव से जन्य हैं । इसीलिये, तुम्हारे दो दिन सुख से बीतते हैं तो तुम दो दिन दुःख की धूप में तड़फड़ाते हो ॥४८॥
(क्रमशः)

*६. उपदेश चितावनी कौ अंग ४१/४४*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
.
*६. उपदेश चितावनी कौ अंग ४१/४४*
.
सुंदर बैठा क्यौं अबै, उठि करि मारग चालि । 
कै कछु सुकृत कीजिये, कै भगवंत संभालि ॥४१॥
अरे साधक ! अब तूं निष्क्रिय(बेकार) क्यों बैठा है । अपना कोई मार्ग निश्चित कर उस पर चलने का विचार कर । या तो अब किसी सत्कर्म में लग जा, या फिर भगवद्भक्ति का मार्ग ही स्वीकार कर ले ॥४१॥
.
सुंदर सौदा कीजिये, भली बस्तु कच्छु खाटि । 
नाना बिधि का टांगरा, उस बनिया की हाटि ॥४२॥
तूं उस भगवद्रूप बणिये(व्यापारी) की दुकान पर जाकर जाँच परख कर किसी अच्छी अस्तु का चयन कर ले, क्योंकि इस बणिये की दुकान में भली बुरी सभी वस्तुओं(टांगरा) का संग्रह है, अतः वहाँ से जो वस्तु खरीदना चाहे, खरीद ले ॥४२॥
.
सुंदर विष खालि खार तजि, लै केसरि कर्पूर । 
जौ तूं हीरा लाल ले, तौ तौ साँ नहिं दूर ॥४३॥
उस बणिये की दुकान में सभी भली बुरी वस्तुओं का संग्रह है । वहाँ विष(जहर), खल(निस्सार बस्तु), खार(खट्टी मीठी) वस्तुओं को छोड़ कर तूं वहाँ से केसर कपूर का संग्रह कर ले । यदि तूं वहां से रामभक्ति रूप हीरा भी खरीदना चाहे तो वह भी तुझ से अधिक दूर नहीं है ॥४३॥
.
सुंदर ठगबाजी जगत, यह निश्चय करि जांनि । 
पहलै बहुत ठगाइयौ, उहै घणौं करि मांनि ॥४४॥
परन्तु इसके विपरीत यह तू भली भाँति समझ ले कि यह व्यावहारिक जगत् ठगी से भरा पड़ा है । अरे! तूं इस में रह कर पूर्व जन्मों में इसकी ठगी का बहुत बार लक्ष्य बन चुका है, उस को ही बहुत अधिक समझ कर, अब उस से दूर हट जा ॥४४॥
(क्रमशः)

छत्रियों के महन्त गंगाराम जी

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
.
७ आचार्य चैनराम जी ~ 
.
चैनराम जी तो उच्चकोटि के महात्मा थे । समाज की उक्त प्रार्थना सुनकर बोले यदि समाज की इच्छा है तो मैं चलूंगा, किन्तु इतने दिन से नारायणा दादूधाम में गद्दी पर गंगाराम जी विराजे हैं । उनके लिये आप लोगों ने क्या सोचा है ? पहले उनका ऐसा प्रबन्ध करो, जिससे उनका अनादर भी नहीं हो और उनकी कुछ मर्यादा भी बनी रहे । पहले आप लोग उनको संतुष्ट करो । 
.
यह कहकर चैनराम जी महाराज ने कहा - “हमें आचार्यों की स्मारक छत्रियां बनानी हैं । उन छत्रियों के महन्त गंगाराम जी को बना दिया जाय और उनकी प्रतिष्ठा समाज में रखी जाय । इस पर वे प्रसन्नता से गद्दी छोड देंगे तो फिर मैं समाज की इच्छानुसार नारायणा दादूधाम को अवश्य चला चलूंगा । 
.
फिर समाज के मुखिया व्यक्तियों ने कहा - महाराज ! आपका कथन यथार्थ है । आप तो उच्चकोटि के महात्मा हैं, किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं देना चाहते हैं । तभी तो संपूर्ण समाज आपको चाहता है । गंगाराम जी आप को ही चाहते हैं । वे स्वयं कहते हैं - गुरुदेव आचार्य कृष्णदेवजी की आज्ञानुसार आचार्य चैनरामजी होने चाहिये । 
.
किन्तु कुछ समाज के व्यक्तियों ने ही उन्हें उनकी बिना इच्छा ही बैठा दिया था । फिर भी उनका सम्मान समाज अवश्य रखेगा । फिर समाज के कुछ मुख्य - २ व्यक्तियों ने चैनरामजी महाराज को दंडवत सत्यराम करके गंगाराम जी का उचित प्रबन्ध करने के लिये नारायणा दादूधाम जाने की आज्ञा मांगी । तब आचार्य चैनरामजी ने आज्ञा देते हुये यह आशीर्वाद भी दिया कि - आप लोग प्रयत्न करो सफल हो जाओगे । 
.
फिर वे नारायणा दादूधाम में पहुँचकर गंगाराम जी के पास गये । दंडवत सत्यराम करके बैठ गये फिर प्रस्ताव रखा - समाज चैनरामजी को मेडता से यहां लाना चाहता है किन्तु चैनरामजी कहते हैं कि पहले गंगारामजी का ऐसा प्रबन्ध करो जिससे उनका अनादर नहीं हो । 
.
समाज चाहता है कि आपका उचित प्रबन्ध कर दिया जाय और आपकी समाज में मर्यादा बांध दी जाय फिर तो आप प्रसन्नता से गद्दी छोड देंगे ? आपके गद्दी छोडे बिना चैनरामजी महाराज यहाँ नहीं आयेंगे । वे नहीं आयेंगे तब तक समाज में दुविधा बनी ही रहेगी । तब गंगाराम जी ने कहा - यह तो ठीक ही है, मैं भी समाज में दुविधा रहना तो अच्छा नहीं मानता हूं । 
.
चैनरामजी के लिये सहर्ष गद्दी छोड दूंगा । गद्दी के अधिकारी तो चैनरामजी ही हैं । उनके लिये ही गुरुदेव कृष्णदेवजी कह गये थे । मेरे को तो उनके मेडता निवास के कारण ही गद्दी खाली देखकर कुछ सज्जनों ने बैठा दिया था । मैं चैनरामजी के लिये गद्दी छोडने में कोई दु:ख नहीं मानूंगा । 
(क्रमशः) 

गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025

“एक राजी आनन्द है”

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
.
७ आचार्य चैनराम जी ~ 
.
फिर कृपारामजी भंडारी ने भी समाज के सज्जनों से यही अनुरोध किया कि चैनरामजी के नारायणा दादूधाम में पधारने पर ही समाज में शांति सुख का विस्तार हो सकेगा । अत: उनको लाना ही चाहिये । गंगारामजी ने मान लिया कि चैनरामजी के पधारने पर मैं गद्दी त्याग दूंगा । 
.
फिर उत्तराधे आदि को भी सूचना दे दी गई कि - हम सब चैनरामजी को नारायणा लाने में एक मत हैं । हमारे समझ में आ गया है कि “एक राजी आनन्द है” “दो राजी दुख द्वन्द्व में, सुखी न बैसे कोई ।” अत: समाज का भेद भ्रांति जन्य विग्रह अब शीघ्र ही मिटाना आवश्यक है । हम मुख्य मुख्य व्यक्ति मेडता आ रहे हैं । आप लोग भी मेडता पधारें । 
.
यह सूचना मिलते ही करडाला में स्थित सभी संतों को परमानन्द हुआ और उन सब ने हृदय से स्वीकार कर लिया कि - यह दादूजी महाराज से प्रार्थना करने का ही फल है । दादूजी महाराज ने उनके हृदयों में प्रेरणा की है, तब ही उनके मन में ऐसी भावना उत्पन्न हुई है । अब हम को भी मेडता चलना चाहिये । 
.
यह निश्‍चय करके वे सब करडाला से मेडता आ गये । उधर से कृपाराम जी भंडारी आदि भी मेडता आ गये । सत्यराम करके सब मिलकर परस्पर प्रेम से बातें की और सबने मिलकर यही निश्‍चय किया कि चैनराम जी महाराज को अब शीघ्र ही दादूधाम नारायणा में ले चलना चाहिये । 
फिर चैनरामजी महाराज के पास गये, दंडवत सत्यराम करके सबने प्रार्थना की कि अब शीघ्र ही नारायणा दादूधाम में पधारे । आपके पधारने से ही समाज में पूर्ण सुख शांति हो सकेगी । ऐसी ही हम सब का विचार है और इस समय आपको नारायणा दादूधाम पर ले जाने में सब समाज एक मत है । अत: आप पधारने की कृपा अवश्य करें । 
(क्रमशः)  

*६. उपदेश चितावनी कौ अंग ३७/४०*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
.
*६. उपदेश चितावनी कौ अंग ३७/४०*
.
सुंदर याही देह मैं, हारि जीति कौ खेल । 
जीतै सो जगपति मिलै, हारे माया मेल ॥३७॥
महात्मा श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - यह मानवदेह-प्राप्ति का खेल भी चौपड़ के समान ही है । यदि इसमें कोई जीतता है तो उसे भगवत्प्राप्ति होना सुनिश्चित है । यदि कोई मन्दभाग्य इसमें हार गया तो उस का इस भवसागर में डूबना उतराना(माया मोह में फंसना) ही निश्चित है ॥३७॥
.
सुंदर अबकै आंपणौं, टोटौ नफौ बिचारि । 
जिनि डहकावै जगत मैं, मेल्ह्यो हाट पसारि ॥३८॥
अतः हे साधक ! तूं अपना हानि-लाभ स्वयं पहले विचार ले । ऐसा न हो कि तूं बाद में इस विस्तृत संसार में व्यवहार करता हुआ कहीं ठगा जाय ॥३८॥
.
सुंदर भटक्यौ बहुत दिन, अब तू ठाहर आव । 
फेरि न कबहूं आइ है, यहु औसर यहु डाव ॥३९॥
तूं इस संसार में बहुत दिन भटक चुका ! अब तूं कहीं ठहरने का अपना मन बना; क्योंकि तूं यह भले प्रकार से समझ ले कि तुझे यह मानव देह रूप बाजी(दाव) पुनः मिलना दुर्लभ है ॥३९॥
.
सुंदर दुःख न मानि तूं, तोहि कहूं उपदेश । 
अब तौ कछूक सरम गहि, धौले आये केश ॥४०॥
तूं मेरी इस बात को सुन कर कष्ट न अनुभव करना । मैं तो तुम्हें केवल सत्परामर्श दे रहा हूँ । तुझे ऐसा करते हुए अब कुछ लज्जा या संकोच का अनुभव होना चाहिये; क्योंकि अब तूं वृद्ध हो चला है । तेरे शिर के केश भी सफेद हो चुके हैं ! ॥४०॥
(क्रमशः) 

*६. उपदेश चितावनी कौ अंग ३३/३६*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*महात्मा कविवर श्री सुन्दरदास जी, साखी ग्रंथ*
.
*६. उपदेश चितावनी कौ अंग ३३/३६*
.
सुंदर औसर कै गयें, फिरि पछितावा होइ । 
शीतल लोह मिलै नहीं, कूटौ पीटौ कोइ ॥३३॥
अरे भाई ! यह सुन्दर अवसर चूक जाने पर(मानव देह के चले जाने पर हैं) पछताता ही रह जायगा; क्योंकि ठण्ढा लोहा कभी जुड़ा नहीं करता, भले ही उस को कितना ही कूटा पीसा जाय ॥३३॥
.
सुन्दर यौं ही देखतें, औसर बीत्यौ जाइ । 
अंजुरी मांहें नीर ज्यौं, किती बार ठहराइ ॥३४॥
महात्मा श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - तेरे देखते ही देखते यह शुभ अवसर तो हाथ से निकल जायगा । क्या तूं नहीं जानता कि किसी के हाथों की अंजलि में भरा हुआ जल कितने समय ठहर पाता है ! ॥३४॥ [ तु०- श्रीदादूवाणी - जाइ जनम अंजुरीको पांणी । (राग मारू, प० १५६)]
.
सुंदर अब तेरी खुसी, बाजी जीति कि हारि । 
चौपड़ि कौ सौ खेल है, मनुषा देह बिचारि ॥३५॥ 
विजय-पराजय : इस प्रकार हे साधक ! मैंने तुमको तुम्हारी मानवदेह का महत्व अनेक दृष्टान्तों से समझा दिया । अब तूँ जैसा चाहे वैसा कर । अरे यह मनुष्यदेह की प्राप्ति तो चौपड़ का खेल है । इस में समझदार मनुष्य ही जीत पाता है । यह तूं अच्छी तरह विचार ले, समझ ले ॥३५॥
.
सुंदर जीतै सो सही, डाव बिचारै कोइ । 
गाफिल होइ सु हारि कै, चालै सरबस खोइ ॥३६॥
इस चौपड़ के खेल में वही जीतेगा जो बुद्धिमत्ता के साथ प्रत्येक बाजी(दाव) लगायगा । जो इसमें प्रमाद(भूल) करेगा उस की पराजय निश्चित है । और वह इस खेल में अपना सर्वस्व(समस्त चल अचल सम्पत्ति) भी नष्ट कर देगा ॥३६॥
(क्रमशः)

समाज में शांति सुख का विस्तार

*#daduji*
*॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥*
*॥ दादूराम~सत्यराम ॥*
*"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =*
.
७ आचार्य चैनराम जी ~ 
.
उन पत्रों को पढकर नागों के महन्त, सन्तों ने अपनी सभा की और उसमें यह निश्‍चय किया कि - उतराधे आदि हमारी बात नहीं मानते अत: इनको पकडवाकर कैद करा दिया जाय । यह निश्‍चय करके तत्कालीन जयपुर नरेश सवाई माधोसिंह प्रथम के पास जाकर कहा - हमारे समाज के आचार्य जो सरकार की सम्मति से बैठाये गये हैं, उनको बल पूर्वक हटा कर हरियाणा व पंजाब के लोग दूसरा बैठना चाहते हैं, और इसके लिये वे सांभर में एकत्र हो रहे हैं । 
.
वे लोग नारायणा दादूधाम आ गये तो बहुत बडा उपद्रव हो जायगा । अनेक मानव मारे जायेंगे । अत: उन उपद्रव करने वालों को वहां पकड कर कैद कर दिये जाँय । राजा ने संतों को कैद करना तो उचित नहीं समझा किन्तु नारायणा दादूधाम पर सेना भेज दी, जिससे वहां कोई प्रकार का उपद्रव नहीं हो सके । 
.
नारायणा दादूधाम पर सेना का आना सुनकर उतराधे आदि सब सांभर को छोडकर करडाले चले गये और दादूजी महाराज के तपस्या स्थल पर प्रार्थना करना आरंभ कर दिया । प्रार्थना प्रात: सायं सब संत करते थे । हे भगवन् ! नागों को, गंगारामजी और कृपारामजी को ऐसी सद्बुद्धि दीजिये जिससे समाज में एकता होकर भेद भ्रांति जन्य विग्रह समाप्त हो जाय और नागे ही स्वयं जाकर मेडता से आचार्य चैनरामजी को नारायणा दादूधाम में लाकर गद्दी पर बैठावें । 
.
समाज में शांति सुख का विस्तार हो । उक्त प्रकार प्रार्थना कई दिन तक सब संत करते रहे । तब नागों में, कृपारामजी और गंगारामजी में भी यह भावना उत्पन्न हो गई कि - गुरुवर कृष्णदेवजी की आज्ञा हम सब को ही माननी चाहिये और चैनरामजी को नारायणा दादूधाम पर लाना चाहिये ।
(क्रमशः)