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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #३०१)*
*राग सोरठ ॥१९॥**(गायन समय रात्रि ९ से १२)*
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*३०१. धीमा ताल*
*मन रे, तेरा कौन गँवारा, जपि जीवन प्राण आधारा ॥टेक॥*
*रे मात पिता कुल जाती, धन जौबन सजन सगाती ।*
*रे गृह दारा सुत भाई, हरि बिन सब झूठा ह्वै जाई ॥१॥*
*रे तूँ अंत अकेला जावै, काहू के संग न आवै ।*
*रे तूँ ना कर मेरी मेरा, हरि राम बिना को तेरा ॥२॥*
*रे तूँ चेत न देखे अंधा, यहु माया मोह सब धंधा ।*
*रे काल मीच सिर जागे, हरि सुमिरण काहे न लागे ॥३॥*
*यहु औसर बहुरि न आवै, फिर मनिषा जन्म न पावै ।*
*अब दादू ढ़ील न कीजे, हरि राम भजन कर लीजे ॥४॥*
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भा०दी०-हे मन: ! अस्मिन् संसारे नास्ति कोऽपि तव । स्वजीवनाधारं प्राणस्वामिनं प्रभु भज । हे मनः ! मातृपितृपुत्रकलत्रजातिधनधान्यादिकं सर्वं मिथ्या, सर्वान् विहाय चान्तेऽवश्य- मेकाकिना त्वया गन्तव्यम् । न च कोऽपि सहागच्छति, न च गच्छति । त्रिविधतापपापापहारी भगवानेव तव सङ्गी । तव मम भावं मा कुरु कुत्राऽपि । त्वं विवेकविचारहीनोऽन्धोऽसि किम्? अत: सावधानो भूत्वा पश्य । सर्वकार्यजातं मायामोहजनकम् । तव शिरसि कालप्रेरितो मृत्युः समायातोऽस्ति । अनेकैः सुकृतकर्मभिस्त्वयेदृशं मनुष्यजन्म प्राप्तम् । अतो मा विलम्ब कुरु । जननमरणदुःखहरं श्रीरामं ध्यात्वा तं प्राप्नुहि ।
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उक्तं हि प्रबोधसुधाकरे-
चेतश्चञ्चलतां विहाय पुरत: संधाय कोटिद्वयं ।
तत्रैकत्र निधेहि सर्वविषयानन्यत्र च श्रीपतिम् ॥
विश्रान्तिर्हितमप्यहो क्वनु तयोर्मध्ये तदालोच्यताम् ।
युक्त्या वानुभवेन यत्र परमानन्दश्च तत्सेव्यताम् ॥
पुत्रान् पौत्रानथ स्त्रियोऽन्य युवतीर्वित्तान्यवोऽन्यद्धनम् ।
भोज्यादिष्वापि तारतम्यवशतो नालं समुत्कण्ठया ।
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हे मन ! इस संसार में तेरा कोई भी नहीं है । अपने जीवन के आधार प्राणों के स्वामी प्रभु को भज । रे मन ! माता, पिता, भाई, पुत्र, कलत्र, जाति, धन, धान्य आदि सभी मिथ्या हैं । उन सबको त्याग कर अन्त में विवश होकर अकेले को ही जाना है । न कोई साथ आता है, न कोई किसी के साथ जाता है । त्रिविध ताप और पापों को हरने वाले भगवान् ही तेरे साथी हैं । तव – मम भाव को त्याग दे ।
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क्या तू विवेक-विचारहीन अन्धा है ? सावधान होकर देख । संसार के सभी कार्य मोह ममता को पैदा करने वाले हैं । तेरे शिर पर तो काल से प्रेरित मृत्यु नाच रही है । ऐसा भजन का अवसर फिर नहीं आयेगा । जो कर्म तू कर रहा है, उनसे तुझे फिर मानव शरीर भी नहीं मिले । अतः देरी मत कर, जो जन्म मरण को हरने वाले राम हैं, उनका भजन कर, जिससे तुझे भगवान् प्राप्त हो जाय ।
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प्रबोधसुधाकर में लिखा है कि –
अरे, चित्त चंचलता को छोड़कर सामने तराजू के दोनों पलड़ों में एक में विषयों को और दूसरों में श्रीपति भगवान् को रख और फिर इसका विचार कर कि दोनों के बीच में विश्राम और हित किस में है ? फिर युक्ति और अनुभव से जहाँ पर परमानन्द मिले, उसी का सेवन कर । पुत्र, पौत्र, स्त्रियां, अन्य युवतियां, अपना धन और पराया धन और भोज्यादि पदार्थों में न्यूनाधिक भाव होने से कभी इनसे इच्छा शान्त नहीं होती, किन्तु जब चित्त में घनामृतानन्द सिन्धु विभु यदुनाथ श्रीकृष्ण चित्त में प्रकट होकर इच्छा पूर्वक विहार करते हैं, तब यह बात नहीं रहती क्योंकि उस समय चित्त स्वच्छन्द और निर्भय हो जाता है ।
(क्रमशः)