卐 सत्यराम सा 卐
दादू जब लग जीविये, सुमिरण संगति साध ।
दादू साधू राम बिन, दूजा सब अपराध ॥
समाचार सत पीव का, कोइ साधु कहेगा आइ ।
दादू शीतल आत्मा, सुख में रहे समाइ ॥
साधु शब्द सुख वर्षहि, शीतल होइ शरीर ।
दादू अन्तर आत्मा, पीवे हरि जल नीर ॥
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बेमुख या मनमुख ऐसे आदमी को कहा जाता है जो परमात्मा को भुला चुका हो । उसे अभागे जीव की स्थिति ऐसे बन्दर के समान होती है जिसके गले में बहुमूल्य रत्नों का हार पहना दिया जाए और वह उसे बेकार का बोझ समझकर गवाँ दे । वह उस कलछी की तरह है जो स्वादिष्ट भोजन में घूमती रहती भी, उसके स्वाद से वंचित रह जाती है । यही दशा उस मेंढक की होती है जो जो कीचड़ में अपनी आँखों के सामने खिले कमल की सुंदरता को सम्मान नहीं दे सकता है, या फिर मृग की, जिसकी नाभि की सुगन्धित कस्तूरी उसे भटकाती रहती है । गूजर की पाली हुई गायें उसके लिए दूध जैसा पदार्थ हाज़िर करती हैं, पर वह उसका आदर न कर उसे बेचकर पशुओं के खाने के लिए पशुओं के खाने के लिए खली और भूस खरीद लाता है । परमात्मा और उसके सन्तों से विमुख जीव अपनी आयु के बहुमूल्य वर्ष व्यर्थ के धन्धों में बिता देता है और अन्त में यमों के वश में पड़कर सज़ा भोगता है ।
रतन मणी गलि बांदरै किहु कीम न जाणै ।
कड़छी साउ न संम्हलै भोजन रसु खाणै ।
डडू चिकड़ि वासु है कवले न सिाणै ।
नाभि कथूरी मिरग दै फिरदा हैराणै ।
गुजरु गोरसु वेचि कै खलि सूड़ी आणै ।
बेमुख मूलहु घुथिआ दुख सहै जमाणै ॥४॥
(Vaar 13)
The monkey knows no worth of the jewellary tied to its neck. Even being in the food, the ladle does not know the taste of the dishes. The frog always lives in mire but still knows not the lotus. Having musk in its navel the deer runs around confused. The cattle breeder puts the milk on sale but fetches home, the oil cakes and husk. The apostate (Atheist) is a person basically gone astray and he undergoes the sufferings given by the Yama (Lord of Death).
आवागमन से छूटने के लिए मनमुख अपनी मर्ज़ी और अक्ल के अनुसार कितने यत्न करते हैं पर अगम मण्डल की कुंजी परमात्मा ने सन्तों के हाथ सौंपी हूई है और उसने उनका पल्ला पकड़ा नहीं तो कैसे मुक्ति हो ? ऐसे साधकों को भाई गुरदास जी ने सच्चे सन्तों की शरण ढूँढने को प्रेरित किया है । आप लिखते हैं:
यदि पेड़ों पर उलटे लटकने या सिर नीचा करके खड़े होने से कल्याण हो सकता तो चमगादड़ तो दिन-रात उसी प्रकार का वो तप करते रहते हैं । यदि श्मशान-भूमि जैसे सुनसान स्थान में डेरा डालने से (जैसे अघोरी तामसिक उपासना करते हैं) उद्धार हो जाता तो चूहें अवश्य बाज़ी मार लेते, क्योंकि वो अपने बिल ऐसे ही सुनसान जगह में बनाते हैं । योग-अभ्यास से चाहे सिद्धियाँ हासिल हो जाएँ जैसे आयु में वृद्धि होना आदि, पर अधिक वर्ष जीवित रहने से मोक्ष का अधिकारी नहीं बना जा सकता है । साँप बहुत लम्बी आयु भोगते हैं और अपने अन्दर के ज़हर में ही गलते या तपते रहते हैं । यदि शरीर पर पानी न डालकर, कपडे न धोकर, केवल गंदे रहने से ही छुटकारा सम्भव हो तो कीचड या मिट्टी में लेटने वाले सूअरों और गधों को अपनी योनि की अधम-गति में अधिक समय न जीना पड़े । कई लोगों का विचार है कि जंगलों में रहने से, वृक्षों और पौधों के फलों या जड़ों से पेट भरने से निर्वाण प्राप्त होता है, पर वे यह नहीं सोचते कि भेड़ों और बकरियों के झुण्ड यही कुछ खाकर निर्वाह करते हैं । सच तो या है कि जिस प्रकार दरवाज़े के बिना किसी घर में प्रवेश नहीं किया जा सकता है, उसी प्रकार बिना पूर्ण गुरु की सहायता के बिना मुक्ति का द्वार नहीं मिलता है ।
सिर तलवाए पाईऐ चमगिदड़ जूहै ।
मड़ी मसाणी जे मिलै विचि खुडां चूहै ।
मिलै न वडी आरजा बिसीअरु विहु लूहै ।
होइ कुचीलु वरतीऐ खर सूर भसूहे ।
कंद मूल लाईऐ अईअड़ वणु धूहे ।
विणु गुर मुकति न होवई जिउं घरु विणु बूहे ॥१३॥
(Vaar 34)
If bowing only could grant liberation then the bats in the forests hang from trees upside down. Longevity also does not bring it because snake during its whole long life goes on smouldering in its own poison. If dirt could make it attainable, asses and swines always remain dirty and muddy. If relishing over tubers and roots could provide it (liberation), then herd of animals go on hauling and eating them (they should also have attained liberation). As a house (in fact) is useless without door, one cannot attain liberation without Guru.
यही दलील तीर्थों पर स्नान करने(मेंढक), जटा रखने(बड़ का वृक्ष), नंगे घूमने(मृग), शरीर पर भभूत मलने(गधा), मौन धारण करने(पशु) पर भी बरबस लागू होती है ।
मिलै जि तीरथि नातिआं डडां जल वासी ।
वाल वधाइआं पाईऐ बड़ जटां पलासी ।
नगे रहिआं जे मिलै वणि मिरग उदासी ।
भसम लाइ जे पाईऐ खरु खेह निवासी ।
जे पाईऐ चुप कीतिआं पसूआं जड़ हासी ।
विणु गुर मुकति न होवणी गुर मिलै खलासी ॥१४॥
(Vaar 34)
If one could attain liberation by taking bath at pilgrimage centres then (we know that) the frogs always live in water. If growing long hair could make it available then the banyan has long roots hanging from it. If going naked gets it, all the deer in the forest can be called detached ones. If it is attained by smearing ashes on body, the ass always rolls in dust. If muteness could bring it, the animals and inert objects are certainly speechless. No liberation is attained without Guru and bondages are shattered only after meeting the Guru.